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________________ ५३८ जैन महाभारत महारथी वहा बैठे उन्हे सान्त्वना दे रहे थे। युधिष्ठिर बोले- "हा, शोक | कृपाचार्य , दुर्योधन कर्ण और दु शासन को खदेड देने वाला परम प्रतापी मेधावी वीर बालक अभिमन्यु मेरी ही भूल के कारण माग गया। अब मैं अर्जुन को क्या उत्तर दूगा। जब वह अपने प्रिय पुत्र को मुझ से पूछेगा तो मैं किस मु. से कहूगा कि मैंने अपनी विजय की कामना से चक्र व्यूह मे भेज कर मरवा डाला। सुभद्र और उत्तरा जव मुझ से उस वीर की मृत्यु के लिए.. उत्तर मागेगी तो मैं कैसे कहूगा कि वह बालक मेरे लिए रण करता हुआ शहीद हो गया। हाय-1 सुभद्रा का लाल और . उत्तरा का सुहाग. मेरे रहते हुए दुष्ट कौरव महारथियों द्वारा मारा गया और मैं कुछ न कर सका। नहीं, नहीं. उसकी मृत्यु का ज़िम्मेदार मैं हू । मैंने ही उसे चक्रव्यूह मे भेजा था। ससार क्या कहेगा? यही ना, कि युधिष्ठिरःने अपने भाग्य की आग मे अर्जुन पुत्र की आहुति देदी।" __ युधिष्ठिर को इस प्रकार विलाप करते देख कर समस्त उपस्थित पाण्डव चीरो'का हृदय विदीर्ण हया जा रहा था। भीमसेन ने सान्त्वना देते हुए कहा- 'महाराज ! वोर अभिमन्यु मरा'नही, वह अमर हो गया, उस ने ऐसे पराक्रम का प्रदर्शन किया कि शत्रु तक मत्रामुग्ध हो गए... वह आज भी, अब भी जीवित है। उस ने अपने पिता और अपनी माता का नाम उज्जवल कर दिया। धन्य है. अर्जुन. धन्य है सुभद्रा । हमे उस के लिए शोक नही करना चाहिए। वह वीर गति को प्राप्त हुना।” पर प्रम बीहा शक्ति जिन्हो मे है उन्हें दुख होता.ही है। ___ कहने को तो भीम ने यह शब्द कह दिए, पर स्वयः उस का हृदय भी उस के शब्दो से सन्तुष्ट नही हो रहा. था-1. यह तो सभी जानते हैं कि जिस ने जन्म लिया है, उसे एक न एक दिन मरवा.. हैं। शोक और विलाप करने से भी कुछ होता.नही, फिर भी महान. प्रात्माए तक अपने प्रिय व्यक्तियो की मृत्यु-पर विलाप करती ही है। अभिमन्यु का विछोह तो ऐसा विछोह था कि सुनने वाले भी वेवस रो पड़े। उसकी वीरता-और-शत्रों के अधर्म की गाथा-ने तो और अग्नि मे घृत की आहुति का काम किया। __- --युधिष्ठिर सुवक्ते-हुए -बोले-"मैं किस तरह अपने मन को मझाऊ.। उस वीर की मृत्यु-ने मेरे-मन को क्षत-विक्षत कर दिया ..
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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