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________________ ५२०. जैन-महाभारत. ही है बारह दिन तक तुमने जिस पराक्रम का प्रदर्शन किया, उस ने हमें भी आश्चर्य मे डाल दिया है। तुम ने बड़े बड़े विख्यात योद्धाओं के दात खट्टे कर दिए है । तुम्हारे अन्दर उत्साह है, विल है और कौशल है। ठीक है हमे इस समय इस प्रकार देखकर तुम्हे आश्चर्य हुआ होगा। पर बेटा !- दुःख है कि आज हमारे और, तुम्हारे-वारह दिन के सफलता पूर्ण युद्ध के कारनामे पर पानी फिर । रहा है। - "क्यों क्या हुआ ?" आश्चर्य से अभिमन्यु ने कहा। "वात यह है कि दुष्ट दुर्योधन के कुचक्र में फिर एक बार हम फस गए हैं। आज द्रोणाचार्थ ने चक्र व्यूह रचा है, परन्तु उस मे प्रवेश करने और उसे तोडने की विधि हम में से कोई नही जानता। वीर अर्जुन जानता था, पर वह तो दक्षिण की ओर संशप्तको से लड़ने गया। है। यही वह समस्या है जिसके कारण हम दुखित हैं। कुछ समझ मे नही आता कि क्या करें? आज हमारी पराजय निश्चित है ।"युधिष्टिर ने बड़े प्रेम से अभिमन्यु को समझाया। अभिमन्यु ने छाती तानकर कहा--"पिता जी. यहां नही तो क्या हुआ, उनका पुत्र तो यहां है।' युधिष्ठिर की आँखो मे तुरन्त चमक आ गई। हर्षातिरेक से पूछा-"क्या तुम जानते हो चक्र च्यूह तोड़ना ?" - "मैं चक्र व्यूह मे प्रवेश करना तो जानता हू परन्तु प्रवेश करने के उपरान्त कही कोई सकट आ जाये तो व्यूह से वाहरे निकलने की विधि मुझे ज्ञात नही" ~नम्र शब्दो में अभिमन्यु बोला। भीम को अभिमन्यु की बात से बड़ी प्रसन्नता हुई, उस ने .. कहा -"प्रवेश करने के उपरान्त संकट की तुम ने एक ही कही। मैं जो'तुम्हारे साथ रहूंगा।", '. युधिष्ठिर बोले- 'हां, हां हम सभी तुम्हारे पीछे पीछे चलेंगे : व्यूह को तोड़कर एक बार 'तुम प्रवेश कर लो, फिर तो जिधर से . ' तुम आगे बढ़ोगे. हम तुम्हारे पीछे पीछे चले आवेगे और तुम्हारी . सहायता को तैयार रहेगे।" ' भीमसेन ने पुन: कहा-तुम्हारे ठीक पीछे मैं रहूंगा. उस समय तुम्हारे अंगरक्षक जैसा काम करूगा और धृष्टद्युम्न, सात्यकि
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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