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________________ जैन महाभारत समुद्र विजय को ललकार सुनकर यादव सेना ने श्री कृष्ण और समुद्र विजय का जयनाद किया और दांत पीस कर हल्ला बोल दिया। इस भयकर प्रहार से जरासिन्ध की सेना को आत्म रक्षा करना कठिन हो गया, निकट था कि जरासिन्ध के सैनिक रणक्षेत्र मे शस्त्र फेंक कर भाग जाते, कि सूर्य अस्त हो गया, और युद्ध बन्द कर दिया गया इस आक्रमण से जरासिन्ध की सेना बहुत भयभीत हो गई थी। तब उसे सूझ गया कि उसकी पराजय अवश्य 'वाको है, पर प्रात होते ही कर्ण अपनी सेना लेकर वहा पहुच गया और उसने जरासिन्ध से उसकी ओर से युद्ध करने की इच्छा प्रगट की, अधा क्या चाहे ? दो नयन, बिल्ली के भागो छीका टूट गया, जरासिन्ध ने सहर्ष उसे उस दिन रण भूमि में सेना ले कर लडने की आज्ञा दी, पर साथ ही अपना स्नेह दर्शाने के लिए उसने कहा"श्री कृष्ण के पास बहुत शक्ति है, भीम और अर्जन उस ओर से लड रहे हैं, बहुत से बीर मारे जा चुके हैं, इस लिए तुम अपने को बचा कर होशियारी से युद्ध करना।" कर्ण ने कहा- "आप विश्वास रखिये, मैं अर्जुन और भीम को यमपुर पहुचा कर छोड गा । मैं उन्हें बता दूंगा कि इस भूमि पर ऐसे भी वीर हैं जो उन्हे धूल चटा सकते है।" कर्ण के साथ उसका मित्रदेव नाग कुमार भी हो गया, और वे रणक्षेत्र मे जा डटे। उधर से वसुदेव और उग्रसेन आ गए। कर्ण को रणक्षेत्र में देख कर वसुदेव ने गर्ज कर कहा- अच्छा, कर्ण तुम्हे भी मृत्यु यहा खीच लाई ?" "मैं तो तुम्हारी मृत्यु का आदेश ले कर आ रहा हूं।" "तनिक ध्यान से देखो किधर तुम्हारी मृत्यु का ही आदेश न हो ।" 'कर्ण ने तुरन्त बाण मारते हुए कहा-"देखो वह आ गया। मृत्यु. का आदेश, तुम स्वय पढ लेना।" - दोनो एक दूसरे पर वार करने लगे। बहुत देर तक धमा
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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