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________________ * दो शब्द र प्रस्तुत ग्रन्थ और लेखक के विषय मे इससे पूर्व प्रथम तथा द्वितीय भाग मे बता चुके हैं इस विषय में अधिक बताना दिवाकर को दीपक दिखाना है। पुस्तक के लगभग 625 पृष्ठ हैं जब पुस्तक ही इतनी महान् है तो उसके रचयिता कितने महान होगे यह तो पाठक गण अपनी प्रतिभा से विचार सकेंगे। ' प्रूफ का संशोधन श्री रमेश मुनि जी महाराज तथा श्री सन्तोष मुनि जी महाराज ने अति ही सावधानी एव प्रेम से किया फिर भी त्रुटि का रह जाना सम्भव है क्योकि पुस्तक एक विशाल एव विराट है। उपरोक्त दोनो मुनि इस ग्रन्थ लेखक श्रमण संघीय पंजाव प्रान्त मन्त्री पं० रत्न कवि सम्राट जैन धर्म भूषण परम श्रद्धेय श्री शुक्ल चन्द्र जी महाराज के ही शिष्य है। जिन्होने अत्याधिक परिश्रम से प्रूफ संशोधन कर अनेक श्रुटियां निकाल दी फिर भी कोई त्रुटि हो तो धर्म प्रिय सज्जन सुधार कर पढे । प्रत्येक बन्धु का परम कर्तव्य है कि जैन महाभारत के श्रादर्श और उसके दृष्टि कोण पर चलने का भरसक प्रयास करे तथा अपना जीवन सफल वनाए तभी अपना परिश्रम सफल समझेंगे। जो स्थान गगन मे प्रथम नक्षत्र को उपवन में प्रथम सुमन को माला में प्रथम मोती को प्राप्त है वही स्थान ग्रन्थो मे प्रथम जैन महाभारत को है। इससे अधिक लिखने मे में समर्थ नही हु विशेष पाठक गण स्वय समझ लेंगे। भवदीय : सुखदेव रान जैन कोतवाली बाजार, अम्बाला शहर ।
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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