SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 475
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भीष्म का विछोह स्कर के गम मे डूबने 'जा रहा हो। दुर्योधनं हाथ जोड कर घुटनो के बल बैठ गया और अश्रुपात करते हुए बोला-"पितामह ! अब आप के पश्चात हमारा क्या होगा, आप तो हमे बीच मझधार मे ही छोड़े जा रहे हैं " पितामह की आवाज थक गई थी, बोले “बेटा दुर्योधन ! तुम्हें सद्बुद्धि प्राप्त हो यही मेरी कामना है . देखा तुमने ? अर्जुन ने मेरे सिर को तोकया कैसे लगाया, उस ने मेरी प्यास कैसे बुझाई? यह वात क्या और किसी से सम्भव है ? यह सब उसके पुण्य, प्रताप तथा शुभ कर्मो का फल है और है उसकी न्याय प्रियता, ताण बुद्धि तथा पराक्रम के कारण । अब भी समय है। विलम्ब न करो। इनसे सन्धि करलो।" दुर्योधन को यह वात भला कैसे पसन्द आ सकती थी, बोला तो कुछ नही पर मन ही मन कुढता रहा । तब अर्जुन ने हाथ जोड कर विनय पूर्वक पूछा-"पितामह! भाप ने जो आज्ञा दो, मैंने पूर्ण की। अब आपकी अन्तिम कामना ना हो वह भी बतादे, ताकि उसे पूर्ण करके मे अपने को धन्य समझू आप चाहे जिस ओर भी रहे, पर हमने सदा ही आप का आदर या है और आज आप को खोकर हमारे कुल को जो क्षति पहुच । ह, उसका उत्तर दायित्व मेरे ही ऊपर है। यह धष्टता मुझ से में इसका अपराधी है। कृपया मुझे क्षमा कर दीजिए।" पितामह अपने जीवन की अन्तिम घडिया गिन रहे थे, तो मा अजुन की बात सुन कर उनके अधरो पर मुस्कान खेल गई, बोले वटा । तुम ने जो कुछ किया, वह गहस्थ धर्म के प्राधीन आता मन अपना कर्तव्य निभाया । तुम युद्ध मे इस लिए तो नही आय कि अपने कुल या वश की रक्षा करे। बल्कि इस लिए आये हो अन्याय के पक्ष पातियों को, जिस प्रकार भी सम्भव हो, परास्त भार न्याय की रक्षा के लिए शत्र के प्राण हरण करने में भी न । म जानता हूं कि तुम मेरा बघ इस लिए नही करना चाहते म बुरा आदमी हूं। बल्कि मैं तुम्हारे शत्रयो का सेनापति था या वह तुम्हारे लिए उचित ही था। रही बात अन्तिम तो यह प्रश्न दुर्योधन पूछे तो अच्छा हो।" तुमने जो किया वह तुम्हारे लिए उचित
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy