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________________ मृत्यु का रहस्य ४५. गई। अन्त मे श्री कृष्ण बोले-"पार्थं ! ससार में कोई ऐमो समस्य नही जिसको सुलझाने का उपाय न हो। उपाय है।' "तो फिर आप बताते क्यों नहीं ?" _केशव के अधरो पल्लवो पर मुस्कान उभर आई। .. "हा, हाँ मधु सूदन ! भीष्म पितामह को रास्ते से हटाने का उपाय बताना ही होगा।" • . अर्जुन के जोर देने पर श्री कृष्ण बोले - “देखता हं भीष्म जो की उपस्थिति अब तुम्हे बुरी तरह खलने लगी है। मैं यह जानते हुए भी कि उनको रास्ते से केबल तुम्हारे ही पैने बाणो से हटाया जा सकता है और उस सहारे तक तुम्हारी दृष्टि नही जा रही, जो, तुम्हे उप्लब्ध है, चाहता ह कि ऐसे अवसर पर तुम अपने पितामह की महानता के दर्शन करो। तुम जानो और पितामह मे ही यह प्रश्न उठाओ।" ... . . . अर्जुन सोच मे पड गया। उसे यह बात अच्छी न लगौ । धर्मराज युधिष्ठिर जो अभी तक मौन धारण किए बैठे थे और स्वय 'उस प्रश्न पर, विचार कर रहे थे उत्सुकता वश इस विषय मे परामर्श लगे और कुछ देर बाद वे भीष्म पितामह के शिविर की ओर चल पड । . । अभी अभी दुर्योधन परामर्श करके भीष्म पितामह के शिविर से निकला था कि धर्मराज पहच गए। पितामह का सुख कमल खिल उठा । अभिवादन स्वीकार कर के तुरन्त पूछ बैठे- 'राजन् ! आप अपने भ्रातागो सहित सकुशल तो हैं ?" । ' "पितामह ! आपकी कृपा से अभी तक तो जीवित है.... .. "पितामह त सकुशल तो परन्त पूछ बैठे "तो क्या भविष्य के प्रति सशक हो" ___ "हाँ, पितामह । लगता है कि आप के वे बाण जो माता कुन्ती और माद्री की सन्तानो के लिए मृत्यु का सन्देश लेकर पहुंचने वाले हैं अभी समय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।" धर्मराज ने स्वाभाविक मुद्रा मे कहा। उस समय न तो उनके
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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