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________________ ४३२ जन महाभारत गजराज मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा। इस लिये उसने तुरन्त ही एक अर्ध चन्द्राकार बाण चला कर घटोत्कच के त्रिशूल को काट डाला। और शिखा के सामन प्रज्जवलित एक शक्ति घटोत्कच के ऊपर फैकी! अभी वह शक्ति आकाश मे ही थी कि घटोत्कच ने उछल कर उसे पकड़ लिया और दोनो घुटनो के बीच मे दबा कर तोड डाला, यह अद्भुत बात थी। भगदत्त पाखें फ़ाड फाड कर इस अद्भुत घटना को देखता रह गया। आकाश मे देख रहे देवता, गन्धर्व, और विद्याधरो को भी घटोत्कच के विचित्र पराक्रम पर आश्चर्य हुआ पाण्डवो ने इस विचित्र व आश्चर्य जनक पराक्रम को देख कर बडा ही हर्ष प्रगट किया और घटोत्कच की जय जय कार करने लगे। पाण्डव-सेना मे पुन स्फूति आ गई और भोपम सग्राम छिड गया। . भगदत्त पहले तो आश्चर्य से देखता रहा, परन्तु जब उस ने घटोत्कच के जय कार और पाण्डव वीरो के सिंह नाद- सुने तो उससे सहा नही गया खीन्न हो कर उसने पाण्डव महारथियों पर वाण बरसाना प्रारम्भ कर दिया। वह कभी भीमसेन को अपने बाणो का लक्ष्य बताता, तो कभी अभिमन्यु को, और कभी केकय राज कुमारो को भीमसेन को उस के एक बाण ने घायल कर दिया, अभिमन्यु पर तीन वाण लगे। केकय राजकुमारो को पाच बाणो से उस ने बीध दिया। एक प्राण से क्षुत्रदेव की दाहिनी भुजा काट डाली । पांच वाणो से द्रौपदी के पांचो पुत्रो को घायल किया । यह देख कर भीमसेन आग बबूला हो कर भगदत्त पर टूट पड़ा। परन्तु कुपित शूर भगदत्त ने उसके घोड़ो को मार गिराया, सारथि भी काम पाया । और अन्त मे भीमसेन को अपनी रक्षा करनी मुश्किल हो गई । परन्तु भीमसेन शत्रु के बाणो को खाकर गात होने वाला नही था । तुरन्त गदा ले कर रथ मे कूद पड़ा और भगदत के हाथों की ओर ऋध होकर बढा। भीममेन के कन्धे पर रखी गदा और उसकी लाल लाल आखे देखकर कौरव सैनिक मे कुहराम मच गया। मानो यमराज ही उनके सामने आ रहे हो ।
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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