SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 420
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१४ जंन महाभारत दिया और कुछ अन्य राजाओं के साथ उसे चारों ओर से घेर लिमच तथा बाण वर्षा प्रारम्भ कर दी। अर्जुन ने एक क्षण में ही उण्डी धनुष तोड डाले और उसके बाणो की मार से उनके कवच तार करने हो गए। कुछ ही देरि में उनके तडपते शव धूल में लुढकने 'अपना अपने साथियो के मारे जाने पर सुशर्मा दूसरे राजाओं तथा सैमी को को लेकर पार्थ से युद्ध करने लगा। अर्जुन पर चारो ओर से ने देख राजाओं के आक्रमण को देखकर शिखण्डी सहायता के उिस समय पडा और विभिन्न प्रकार के अस्त्र शस्त्र लेकर वह राजाम रहा था और अजयदतग्था दुर्योधन भी आकर अर्जन से पावोर सूर्यास्त के नाम पर युद्धबन्दी की बाटण गाह' थे पाचाल राजकुमार धृष्ट द्युम्न और महारथी सात्यकि शक्ति तथा तोमार आदि की वर्षा करके कौरवो पर मृत्यु मण्डराने लगे। कौरव सेना में हाहाकार मच गया। उधर शिखण्डी अनेक योद्धाओं को मार कर अर्जुन के निकट गया। अर्जुन में कितने ही वीरों को मार गिराया था कितन ही रणागण से विदा ले रहे थे। वे दोनो ही फिर भीम जी के सामने जा डटे। उसी समय सूर्य देव अस्ताचल के शिखर पर पहुच कर प्रभाहीन हो रहे थे और ज्योति समाप्त होकर अन्धकार का आगमन होने लगा था । युद्धवन्दी का बिगुल वज उठा, बिगुल सुनकर पाण्डव वीरो ने भयकर सिंह नाद किया और महाराज युधिष्ठिर के नेतृत्त्व मे अपने शिवरो के लिए प्रस्थान कर दिया। भीम जी की आज्ञा से कौरव सेना भी अपनी छावनी में चली गई । घायल हुए व्यक्तियों ने अपनी अपनी छावनियों में पहुंच कर औषधियो का सेवन किया । और फिर दोनों पक्ष के लोग भोजन आदि से निवृत होकर आपस मे मिलकर एक दूसरे की वीरता की प्रशसा करने लगे।
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy