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________________ 1 3 * छत्तीसवां परिच्छेद 7 3 2 A A • पांचवां दिन अगले दिन प्रात' होने पर ही फिर दोनो सेनाए युद्ध के लिए सज्जित हो गई। भीष्म जी ने आज और भी अच्छी तरह अपनी सेना की व्यूह रचना की । इधर युधिष्ठिर ने पाण्डव सेना की कुशलता पूर्वक व्यूह रचना की। सदा की भाति आज पुन भीम सेन को लागे रक्खा गया । शिखडी, धृष्टद्युमन और सात्यकि भीमसेन के पीछे सेना लेकर खड़े हुए। सब से पिछली पक्ति मे युधिष्ठिर नकुल और सहदेव थे । " ***** शंख ध्वनि के साथ लडाई हुई । भीष्म ने धनुष उठा कर पहली टकार की और वार्ण वर्षा कर के पाण्डव सेना का नाकों दम कर दिया। सेना में हाहाकार मच गया यह देख कर धनजय ने कई बाण भीष्म जी पर मारे और उन्हें बहुत तंग कर डाला । ग्राज भी अपनी सेना को भीम तथा अर्जुन के वाणो के हत प्रभ होते देख दुर्योधन ने द्रोणाचार्य को बहुत बुरा भला कहा । रुष्ट होकर द्रोण चोले -- * , "तुम पाण्डवो के पराक्रम से परिचित ही नही हो और व्यर्थ हो मे चक झक किया करते हो। मैं अपनी ओर से युद्ध मे कोई कसर नहीं रखता तुम निश्चय जानो ।" यह कह कर द्रोणाचार्य पाण्डवों की सेना पर टूट पडे । यह देस सात्यकि ने भी शक्ति पूर्वक उस आक्रमण का जवाब दिया 1
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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