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________________ युद्ध होने लगा थी। वह अपनी पूरी शक्ति लगा कर प्रहार कर रहा था। और थोडी सी ही देरि मे कृतवर्मा को एक बाण से, शल्य को पाच वाणो से, और पितामह को नौ बाणो से बीध दिया। जिस समय भीष्म पितामह के शरीर मे प्राकर अभिमन्य के तीर चुभे। कृपाचार्य को और शल्य को बडा क्रोध आया। शल्य ने कहा- 'देखते ही पितामह ! यह कितना नटखट है, दम्भ मे अन्धा हो गया है। हम बालक समझ कर युद्ध कर रहे है तो यह सिर पर ही चढा आता है मालूम होता है चोटो अपने पख निकाल रही है।" परन्तु भीष्म पितामह को अभिमन्यु के बाणों से कदाचित कोई पोडा न हुई थी, उन्होने मुस्करा कर कहा - "तुम बालक की शरारत पर क्रुद्ध हो गए ? - अरे ! मेरे हृदय से पूछो, मुझे कितनी प्रसन्नता हा रही है। आज मेरा नन्हा पौत्र हम छ योद्धाओ का इस वीरता से सामना कर रहा है, है ससार मे किसी और कुल के पास ऐसा बाल वीर रण वाकुरा ? मैं चाहता हू अभिमन्यु का साहस इसी प्रकार वढे, यह अद्वितीय बलवान हो। चिरजीवि हो।" दुर्मुख बोला- 'पितामह ! आप युद्ध करने आये है बालको का साहस बढाने नही । देखिये इस संपोलिए का मुह न कुचला गया तो यह अनर्थ कर देगा। हम सब को मार गिरायेगा " . गम्भीरता पूर्वक भीष्म बोले-“दुर्मुख ! विश्वास रक्खो म रण भूमि मे कभी किसी को रियायत नही किया करता। पर किसी वीर की शक्ति का गलत मूल्याकन भी नहीं करता। मैं और तुम सभी तो अभिमन्यू के विरुद्ध पूर्ण शक्ति से लड़ रहे है, पर क्या करे इस वीर में अलौकिक शक्ति है।" उसी समय अभिमन्यु ने एक वाण भीष्म पितामह के चरणो गराकर दूसरा झुकी नोक वाला इस युक्ति से मारा कि दुर्मुख ! क सारथी का सिर धड़ से अलग करता हा निकल गया। कृपाचार्य ने कुपित होकर अपने विशाल धनुष पर तीक्ष्ण वाण चटाया, पर अभी धनुष की डोरी खीच ही रहे थे कि अभिमन्यु ने एक एसा वाण मारा कि कप के धनष को दो टक करता हुआ उनके । म गिर गया। सहसा भीष्म पितामह हस पड़े और फिर
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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