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________________ कृष्णोपदेश देश.............३४३ दूसरी ओर से भी इस भयंकर ध्वनि का उत्तर उतनी हा भयकरता से दिया गया। सफेद घोडो से युक्त उत्तम रथ मे बैठे हुए श्री कृष्ण तथा अर्जुन ने भी अपने अपने अलौकिक शख बजाए । श्री कृष्ण के पाच जन्य, अर्जुन के देवदत्त, कर्मवीर भीमसेन के पौण्ड नामक शखों की ध्वनि ने सारे वातावरण को कम्पित कर दिया। और उन शख ध्वनिनों के साथ ही कुन्ती पुत्र धर्म राज युधिष्ठिर ने अनन्त विजय नामक, नकुल तथा सहदेव ने सुद्योष तथा मणि पुष्पक नामक शंखों से भयकर ध्वनि की। इतनी भयकर थी वह ध्वनि को एक बार दु.शासन तथा शकुनि आदि का हृदय कांप उठा। जैसे यह ध्वनि न होकर यमलोक से आ रही मृत्यु की ध्वनि हो। वज्रपात होने का सन्देश हो । - युद्ध प्रारम्भ होने वाला था, महानाश का बवडर उठने वाला था भारत के अनगिनत वीर पुरुषों के सिर पर मृत्यु मण्डराने वाली थी कि धनुर्धारी अर्जुन ने श्री कृष्ण को सम्बोधित करते हुए कहा"तनिक इन सब योद्धाओं को जो दोनों ओर से रण स्थल मे अपने अपने हाथ दिखाने आये हैं, देख तो लं। कृपा कर मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच मे ले चलिए। मैं उन के मुखों को देख कर जानना चाहता हूं कि इस समय उन के हृदय मे कैसे कैसे भाव उठ रहे है। क्या सेनाप्रो के सजने के बाद भी भयकर युद्ध की अशका से दुर्योधन और उस के सहयोगियो के हठवादी हृदय पर कोई चोट नही पहुची ?" श्री कृष्ण तो उस समय द्वारिका नरेश न होकर सारथी मात्र थे, अर्जुन की प्राज्ञा पाकर उन्हों ने रथ दोनो सेनाओ के बीच में ले जाकर खड़ा कर दिया। और बोले-"पार्थ । युद्ध कालिए जुटे हुए इन कौरवों को देखो। यह सब तुम्हारे शोर्य को देखने और पराजित होने के लिए खड़े हैं। इन्हे अपनी विशाल सना पर गर्व है; पर इन में से कितने ही सदबुद्धि वृद्ध हैं जो मन ही मन युद्ध के परिणाम के प्रति सन्दिग्ध हैं। उन्हे तुम्हारे धनुष का जोहर मालूम हैं। वे तम्हारे भ्राताओं और तुम्हारे अन्य सहयोगियों के प्रसीस बल से परिचित हैं। और स्वय समझते हैं कि सिह के सामने असख्य भेडों की भीड भी कुछ नही कर पाती।"
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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