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________________ * उन्नतीसा परिच्छेद * सेनापतियों की नियुक्ति श्री कृष्ण निराश होकर उप्लव्य नगर लौट आये। सभी पाण्डवो के समक्ष उन्होने हस्तिनापुर की चर्चा का हाल सुनाया। अन्त मे वे बोले : "जो भी कह सका। सभी कुछ कहा। सत्य और हित के अनुकूल सारी बातें बताई। किन्तु सब व्यर्थ हया। दुर्योधन ने न नेरी सुनी और न अपने वृद्ध जनो की ही बात मानी।" "अव क्या किया जाये ?" युधिष्ठर ने प्रश्न उठाया। "अब बस दण्ड से ही काम चलेगा।"~-श्री कृष्ण बोले । "एक ही रास्ता है कि हम इस धूर्त को अपने बाहुबल से समझाए। लातो के भूत बातो से नही माना करते।"-भीमसेन ने आवेश मे आकर कहा। युधिष्ठिर भी बोले-"हा अब शाति की आशा नहीं रही। सेना सुसज्जित करो और रण भूमि मे जा डटो।" श्री कृष्ण ने कहा-"बस यही एकमात्र उपाय है। आप लोग अपनी सेनाए तैयार कीजिए।" पाण्डवो की विशाल सेना को सात भागो में विभाजित किया
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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