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________________ 1 * अठाईसवां परिच्छेद * **** ******** ******* *************** कुस्ती को कर्ण का वचन = ******* **** 4 देने से कुन्ती को जब ज्ञात हुआ कि शांति प्रयत्न असफलं हो गए है और कुल नाशी युद्ध की आग भड़कने वाली है, व्याकुल हो उठी। एक बार तो उसे भी क्रोध आया दुर्योधन ने उस के बेटो को सूई की नोक बराबर भी भूमि इकार कर दिया। परन्तु जब उस ने उस भयकर युद्ध पर विचार किया जो छिडने वाला था, तो उसका रोम रोम सिहर उठा । वह सोचने लगी- " राज्य और सम्पत्ति का मोह भी कितना भयानक होता है कि उस के लिए एक ही कुल के परम प्रतापी वीर एक दूसरे के रक्त के प्यासे हो गए है। कुल-वृद्ध भी नाश लीला को अपनी माखो उभरते देख रहे है समर भूमि की ओर उमड़ रहे हैं विदुर तक सन्धि कराने में असफल रहे कुरुक्षेत्र मे धधकने वाली है, जो कुल के कर डालेगी ।" और शीघ्र ही वह आग 1 तमाम भरत खण्ड के वीर 1 गगा नन्दन भीष्म और नीतिज्ञ तेजस्वी सपूतो को भस्म - ******* **** तो वह था कि यह बात सोचते ही वह कॉप उठी। जी चाहता था कि वह इसे रोकने के लिए अपने पाचों पुत्रो को श्रादेश दे कि वे युद्ध से बाज़ प्रायें । पर वह अपने पुत्रों को कैसे कहे कि अपमान का कडवा घूट पी कर वे रह जायें और युद्ध न होने दे ? यदि वह ऐसा कहे भी तो क्या उस के महावली व स्वाभिमानी पुत्र मानने
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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