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________________ जन महाभारत .. . . . . . . . . ---- युद्ध में पाण्डवों की विजय के लिए सहायक सिद्ध होगी। . तब क्या । किया जाय? दुर्योधन यही सोच रहा था कि कर्ण पागया । बोला-"राजन् । -श्री कष्ण तुम्हारे पक्ष में दरार डालने के लिए आ रहे हैं। वे बड़े कूट नीतिज्ञ है और आप इस प्रकार मुह लटकाए बैठे हैं ?" "क्या करू मित्र श्री कृष्ण का यहां सन्धि वार्ता करने के लिए आगमन हमारी युद्ध को योजनाओ पर कही पानी न फेर दे। यही-मैं सोच रहा हूं "-दुर्योधन ने कहा । . . .. " - "श्री कृष्ण तो अब शो के पक्ष में है। उन्होने पाण्डवो को सहायता देने का वचन दिया है। और हैं वे प्रमुख व्यक्ति ज़िन के विपक्ष में होने से प्राप को भयानक हानि उठानी पड़ेगी। एक शत्रु सेनानी आप के यहां आ रहा है प्राप श्री कृष्ण के आगमन. को इस दृष्टि मे लें।"-कर्ण ने कहा। " बात सुनते ही न जाने दुर्योधन के मन में क्या ग्राई कि एक हर्ष की रेखा उसके मुखं पर खिंच गई। श्री कृष्ण का हस्तिना पुर मे अभूत पूर्व स्वागत किया गया। वे हस्तिना पुर पहुच कर सब से पहले वृतराष्ट्र के भवन में गए। वहां उनका .राजोचित सत्कार किया गया । उम के उपरान्त व अन्य कोरव वीरों से मिले। और अन्त मे दुर्योधन के . भवन में गए । दुर्योधन ने श्री कृष्ण का शानदार स्वागत किया । कुछ बात चीन हुई और जब वे चलने लगे तो दर्योधन ने उन्हे उचित प्रादर-सत्कार सहित-भोजन-का निमत्रण दिया। परन्तु-जब-तक वे. दुर्योधन-से बात करते रहे उन्हें यह अनुभव होगया कि दुयोधन मन्धि सम्बन्धी--कोई बात नहीं करता, बल्कि मन्धि चर्षा को वह कानों पर टाल-जाता है और अनेक बातें वह दिखावटी प्रशंसा की उनके लिए कर रहा है। . इस लिए दुर्योधन की बातो से- उन्ह । किसी पड़यन्त्र की दू. आई और, वे वोने-"राजन् ! मै अब राज दूत बन कर पाया है। राज दूतों का यह नियम होता है कि जब का सम्बन्धी-कोहरत रहे उन्हें
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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