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________________ -the *+ .. * सताईसवां परिच्छेद कृष्ण शान्ति दूत बने F युधिष्ठिर विचार मग्न बैठे थे। अभी अभी विराट उनसे कुछ परामर्श लेकर उठे थे। कमरे मे पूर्ण शांति थी और दूर से अस्त्र शस्त्रो तथा सैनिकों के परीक्षण की ध्वनिया श्रा रही थी । उसी समय श्री कृष्ण ने प्रवेश किया। विचार मग्न युधिष्ठिर की दृष्टि ज्यो ही श्री कृष्ण पर पडी, वे ग्रभिवादन के लिए उठ खड़े हुए । 4 प्रणाम के उपरान्त युधिष्ठिर ने उन्हे ससत्कार आसन दिया । श्री कृष्ण वोले- “राजन् ! कौरव पाण्डव दोनो के हित के लिए मैं शांति का दूत बन कर हस्तिनापुर जा रहा हू | आप कुछ श्रीर कहना चाहे तो मुझे बता दीजिए ।" युधिष्ठिर बोले - "आप हमारे लिए जो कष्ट उठा रहे है हम उस से कभी उऋण नही हो सकते। परन्तु कल से मैं आपके हस्तिनापुर जाने के सम्बन्ध मे ही सोचता रहा हू और अब में यह समझ रहा हू कि ग्रापकी हस्तिनापुर यात्रा से समस्या सुलझेगी नही ।" धर्मराज युधिष्ठिर के मुह से श्रनायास ही ऐसी बात सुन कर श्री कृष्ण को बड़ा आश्चर्य हुआ। पूछा - " आपके ऐसा अनुमान लगाने का क्या कारण हो सकता है ?"
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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