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________________ हिडम्बा विवाह 4 सेन के ग्रधरो पर मुस्कान खेल गई । वह बोला- नही, ऐसी कोई बात नही । मैं तो इसके साथ अभी तक खेल कर रहा था । " इतना कह कर उसने एक वार क्रुद्ध हो कर हिडम्वार पर भयकर प्रहार किया और हिडम्वासुर उसकी ठोकरो की मार से वही ढेर हो गया । १९ तव हिडम्बा ने अर्जुन से अनुमय विनय करके भीम के साथ अपने विवाह की बात कही । इतने मे अन्य भ्राता भी जाग गए । युधिष्ठिर ने हिडम्बा की विनती के उत्तर मे कहा - माना कि तुम्हारा भीमसेन से अनुराग है परन्तु जब तक तुम्हारे कुल शील का हमे पता नही तब तक कैसे हम अपनी कुलवधू स्वीकार कर सकते है ? महाराज आप उचित ही फरमाते है, हिडम्बा ने उत्तर दिया परन्तु आप निश्चय रखिये सिंहनियो का जन्म शृगालो के यहा नही होता । विद्याधरों की उत्तर श्रेणी मे एक संध्याकार नाम का विशाल नगर है । उसमे शत्रुरूपी हस्तियों को अपने महा पराक्रम से मर्दन करने वाला हिडम्ववगोत्पन्न यशस्वी सिंह घोष राजा राज्य करता है । उनकी प्रिय पत्नि का नाम लक्ष्मणा है । में उन्ही की पुत्री हिडिम्व सुन्दरी के नाम से प्रसिद्ध हू । मेरी विमाता से उत्पन्न यह हिडम्वासुर मेरा भाई है । परन्तु यह जन्म से उद्धत प्रकृति का था । प्रजा को सताता था । जिसके कारण रुष्ट हो कर पिता ने इसे देश निकाला दे दिया था जिससे यह वहुत दुखित एवं असहाय साहो कर वहा से विदा होने को जब आया, तब मेरे से न रहा गया । इसका मेरे साथ बहुत स्नेह था । और इसके उपकारो से मैं कृतज्ञ भी थी । इस लिए मैंने इसका साथ दिया। और अनेक सहेलियो के साथ विशालरत्न राशि को लेकर मैंने इसके हृदय के भार को हलका करने की चेष्टा करो। और इस सुरम्य वन प्रदेश मे एक विशाल भवन निर्माण करवा कर, जो कि यहां से थोडी दुरी पर है, उसमे निवास करना प्रारम्भ किया और यहां रहने हुए यह नरभक्षी बन गया । जिस स्थल को इस समय आप पवित्र कर रहे है, यह उसी की बिहार स्थली का एक किनारा है । यहा धाकर भी मेरे इस भाई का स्वभाव परिवर्तित न हुआ । जब यह भ्रमण को कही निकल जाता तो निष्कारण ही मारधाड़ प्रारम्भ
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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