SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1 f सन्धि बार्ता और जहा तक अधिकार की बात है स्पष्ट है कि हारी हुई सम्पत्ति पर उन्हे कोई अधिकार नही है । आप उन्हें बता दीजिए कि कौरव किसी धौस मे नही आने वाले । " २ २९९ - कर्ण के इस प्रकार बात काट कर बीच ही मे बोल उठने से भीष्म को बडा क्रोध आया। वे बोले - "राधा पुत्र ! तुम व्यर्थ की । बातें करते हो । यदि हम युधिष्ठिर के दूत के कहे अनुसार सन्धि-न करें ता महायुद्ध छिड जायेगा और मैं जानता हू कि महायुद्ध हुआ तो उस मे दुर्योधनं श्रादि सब को पराजित हो कर मृत्यु का ग्रास बनना होगा। इस लिए भावावेश मे ऐसी आग मत भडकाश्रो जो कौरवो को जला कर भस्म कर डाले। तुम यदि कौरव राज के हित चिन्तक हो तो डीगे हाकनी छोड कर समय की आवश्यकता और वास्तविकता को परखो | याद रखो कि युद्ध कभी भी लाभ दायक नही होता । मत्सय राज्य पर आक्रमण की घटना याद करो और अपने को बुद्धिमान सिद्ध करो । फँ भीष्म पितामह की बात कर्ण को बडी कडवी लगी। वह कुछ बड बडाने लगा । दुर्योधन भी पेंचोताव खाने लगा। द्रोणाचार्य भी कुछ कहने लगे । इस प्रकार सभा मे खलबली मच गई। यह देख कर धृतराष्ट्र बोले 1 " पांचाल राज्य के महामंत्री । मुझे यह जानकर बडी प्रसन्नता है कि मेरे प्रिय भतीजे कुशल हैं और कौरवो से सन्धि के इच्छुक है । ठीक है हमे शांति भग नही होने देनी चाहिए। मैं स्वय भी युद्ध के विद्ध हू । श्राप के द्वारा प्राप्त सन्देश का उत्तर मैं अपने समस्त वुद्धिमान परामर्श दाताओ के साथ मंत्रणा करने के उपरान्त मजय द्वारा भेज दूँगा । आप युधिष्ठिर से जा कर कहे कि शीघ्र ही हमारा राजदूत उन की सेवा मे उपस्थित हो कर सारी बातें करेंगा | आप अनुभवहीन युवको की बात पर न जायें । कौरव वंश के वृद्ध बुद्धिमान लोग अपनी ओर से युद्ध रोकने का पूर्ण प्रयत्न । करेंगे।" 1 इभी बीच दुर्योधन बोल पडा - विहट्टर ! श्राप जाकर यह C
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy