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________________ मामा विपक्ष मे - २९१ छोले । दुर्योधन ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा - "आप युद्ध प्रारम्भ होने पर मेरी ओर से अपनी सेना सहित लडे, मैं बस यही प्रत्युपकार चाहता हूं । सुन कर भद्र राज सन्न रह गए । शल्य को असमजस में पड़े देख कर दुर्योधन बोला"आप के लिए जैसे पाण्डव वैसे ही कौरव । प्राप से हम दोनो का बराबर ही नाता है इसी लिए मैने आप से प्रार्थना की है। यदि प्राप हम दोनो को सम्मान दृष्टि से देखते हैं और केवल कौरवो को इस लिए नही ठुकराते कि हम माद्री की सन्तान नही हैं, तो श्राप को हमारी ओर से लड़ने मे क्या आपत्ति है ? दुर्योधन के उपकार से मद्रराज अपने को कुछ दबा सी अनुभव कर रहे थे. उन्होने विवश होकर कहा - "तुम ने अपनी उदारता से मुझे जीत लिया है। अच्छा ऐसा ही होगा ।" शल्य ने दुर्योधन द्वारा किए गए श्रादर सत्कार का बोझ तलें अपने को दबे हुए अनुभव करके ऐसा कहने को कह तो दिया, पर उनका मन अशांत हो गया । उन पर दुर्योधन की उस चाल का कुछ इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि वे अपने पुत्रो के समान प्यार करने योग्य भानजो- पाण्डवो की सहायता को जाते समय अपनी निश्चय बदल कर दुर्योधन की सहायता का वचन दे दिया । पर कुछ देर तक वे मन ही मन ग्लानि अनुभव करते रहे । कई बार उन्हे अपने पर लज्जा आई । परन्तु वे अपने दिए वचन से लौट भी तो नहीं सकते थे । फिर वह सोचने लगे कि अब वह प्रागे जाये या पीछे लोटे | मन में एक विचार उठा - "कैसे जायेंगे पुत्रवत पाण्डवो के सामने ? किस मुह से कहेंगे कि उन्होने आदर सत्कार के मूल्य पर अपने निर्णय तथा पाण्डवो के प्रति प्रेम को बेच डाला? कैसे बताये उन्हें कि दुर्योधन के द्वारा किए प्रदर के बदले में उन्होने अपने
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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