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________________ जेन महाभारत हिडम्वासुर वह बडा ही भयानक और हिसक प्रकृति का था, उस की आखे सदा जलती रहती थी, वाल उसके नेत्रों की लाली की भाति लाल थे , वह भीमकाय विद्याधर बडा हो बलिष्ट था कहते है कि क्रोध मे आकर वह छोटे मोटे वृक्षों को भी उखाड कर फेकता था। उसके भय के मारे बन की इस ओर कोई भी पग न धरता था । उस के साथ अनेक विद्याओ मे निपुण सुन्दर वहन हिडम्वा भी रहती थीं, जो अपने भाई की भाति बलिष्ठ एवं निर्भीक थी । यह सुरम्य प्रदेश इन्ही की स्थली थी जहा पर कि इस समय पाण्डव सो रहे थे। वह ही, अकेला भीम सेन उनकी रक्षा के लिए जाग रहा था । चन्द्र रश्मियो ने जव शीतल चान्दनी की वर्षा की और धवल चान्दनी वृक्षो के पत्तों मेसे छनछन कर पृथ्वी पर आने लगी, तब इस हल्के और शीतल प्रकाश में विचरण करते हुए हिडम्बासुर की दृष्टि पाण्डवो पर पडी। पासमें बैठे भीमसेन के गदराये शरीरको देखकर उस की जवान चटखाने लगी उसने अपनी वहन की तरफ देखा और वोला हिडम्बा ! आज हमारे लिए अनुपम शिकार आ गया है। वह देख कितना मोटा गदराम शरीर का व्यक्ति वैठा है उसके कुछ साथी सोये हुए हैं। लगता है वह कोई वलिप्ट एव निर्भीक व्यक्ति है उसे सीधे जाकर छेड़ना अच्छा नही तुम जानो और अपने माया जाल से किसी प्रकार फसा कर यहाँ ले पायो फिर दूसरों को भी देखा जायेगा।" हिडम्बा ने भी ध्यान से देखा और प्रसन्न होकर उसने एक परम सुन्दरी का रूप धारण कर लिया और भीम की ओर चली गई। उस ने दूर खड़े होकर भीम को गौर से देखा । भीम के `मुख मण्डल पर मनोहर काति छाई थी, उसके ललाट पर अपूर्व तेज था । उस की आखे शशि रश्मियो के प्रकाश मे भी चमकती दीखती थी, श्याम वदन भीम के मुख पर छाई निर्भीकता से वह बहुत ही प्रभावित हुई। आगे जाकर उसने पूछा- "तुम कौन हो और कहा से आए हो।" भीम ने एक बार उसकी ओर देखा और लापरवाह होकर वोला-हम कोई भी हो, कही से आए हो, तुम्हे क्या मतलव ? इस लापरवाही का हिडम्वा पर प्रभाव पड़ा, उसने कहा-"जानते नही हो यहां हिडम्बा सुर रहता है जिसके नाम से
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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