SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाण्डव प्रकट हुए २६७ _ 'क्या सन्देश है "? “गाधारी पुत्र ! महाराज दुर्योधन का कहना है कि आप को प्रतिज्ञा के अनुसार १२ वर्ष बनवास तथा १ वर्ष अज्ञावास करना था। पर उतावली के कारण प्रतिज्ञा पूर्ति के पहले ही अर्जुन पहचाने गए हैं। अतएव शर्त के अनुसार आप को बारह वर्ष के लिए और बनवास करना होगा।" दूत की बात सुन कर महाराज हस पडे और बोले- "आप शीघ्र ही वापिस जाकर दुर्योधन से कहे कि वे पितामह भीष्म और ज्योतिष शास्त्रों के जग्नकारों से पूछ कर इस बात का निश्चय करे कि अर्जुन जब प्रकट हुआ तब प्रतिज्ञा की अवधि पूर्ण हो चुकी थी अथवा नही। मेरा यह दावा है कि तेहरवा वर्ष पूर्ण होने के उपरान्त ही अर्जुन ने गाण्डीवं धनुष की टंकार की थी।" आज्ञा पाकर दूत हस्तिनापुर की ओर लौट पडा। राजा विराट ने सभी उपस्थित व्यक्तियो को सुनाकर घोषणा की कि वास्तव मे कौरव सेना का विजेता वीर अर्जुन है और यह उत्सव उसी हर्ष के उपलक्ष में मनाया जायेगा। फिर क्या था, मर्च पर चुने हुए कलाकार आये। उन्हों ने अपनी कला का प्रदर्शन प्रारम्भ कर दिया। उल्लास पूर्ण गीतों त्तथा नूपुरो की ध्वनि गूंज उठी और हर्ष का वातावरण मस्ती से झूम उठा। तथा नपल का प्रदर्शन र चुने हुए कलाकार AAR प
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy