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________________ दुर्योधन की पराजय देख, पश्चिम दिशाविशति और भी गए। इपर जल को आते देख, पश्चिम दिशो से भीष्म जी धनुष चढाये लौट पडे । द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, विविंशति और दु.शासन भी अपने अपने धनुष लिए दुर्योधन की रक्षार्थ युद्ध भूमि मे आ गए। इन सभी ने चारो ओर से अर्जुन को घेर लिया और जसे मेघ गिरि पर जल बरसाते है, इसी प्रकार यह सभी अर्जुन. पर बाण तथा दिव्यास्त्रं बरसाने लगे। अर्जुन अपनी रक्षा के लिए अपने दिव्यास्त्रो को तीव्र गति से प्रयोग करने लगा और अन्त मे, यह समझ कि उन सभी का, जो प्राणो का मोहत्याग कर अपनी सम्पूर्ण शक्ति से अाक्रमण कर रहे है, ऐसे ही सफल सामना दुर्लभ है, उस ने तुरन्त कौरवो को लक्ष्य करके सम्मोहन नामक अस्त्र प्रकट किया, जिसका निवारण होना कठिन था। उसी समय उस ने अपने हाथो मे भयकर आवाज करने वाले अपने शख को थाम कर उच्च स्वर से बजाया उसकी गभीर ध्वनि मे दिशा-विदिशा, भूलोक तथा प्राकाश गूज उठे उस समय बहत सभलते संभलते भी कौरव वीर मूछित होगए, उनके हाथो से धनुप और बाण गिर पड़े तथा वे सभी परम शात-निश्चेष्ट हो गए। तव उसे अपनी उस घोषणा का ध्यान आया, जो उसने राजकुमार उत्तर की ओर से रनिवास की स्त्रियो के सम्मुख की थी, और जिसका समर्थन स्वयं राजकुमार उत्तर ने अपनी गौरव पूर्ण मुस्कान से किया था। अत. उत्तर से कहा-"राजकुमार ! जब तक कोरच वीर सचेत नही हो जाते, तुम इनके बीच से निकल जागो और द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वस्थामा तथा दुर्योधन आदि प्रमुख वीरों के ऊपरी वस्त्र उतार लो। मैं समझता हू कि पितामह भीष्म सचेत है क्यो कि वे इस सम्मोहनास्त्र का निवारण करना जानते हैं अत. उनके घोडों को अपनी बायीं ओर छोड़ कर जाना, क्योकि जो होश मे है, उन से इसी प्रकार सावधान होकर चलना चाहिए।" .. .. और हा दुर्योधन तथा कर्ण के वस्त्र भी ले आना" अर्जुन के ऐसा कहने पर राजकुमार उत्तर घोडों की बागडोर छोड कर रथ से उतर पडा और कौरव वीरो के वस्त्र उतार लाया । उन दिनों प्रथा के अनुसार वस्त्र हरण करना जीत का चिन्ह - Treat StI
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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