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________________ २४० जैन महाभारत देखने हुए उसके अनुसार युद्ध करे। कभी कभी बुद्धिमान भ्रम में पड़ जाते हैं। समझ दार दुर्योधन भी क्रोध के कार्य, भ्रम मे पड़ गया है और पहचान नही पा रहा है कि सामने सही वीर, अर्जुन है । अश्वस्थामा ! कर्ण ने जो कुछ कहा मॉलूम हाता है, वह प्राचार्य को उत्तेजित करने के लिए ही था। तुमे उसी बातों पर ध्यान न दो द्रोण, कृपा तथा अश्वस्थामा कर्ण तया दुर्योधन को क्षमा करे। सम्पूर्ण शास्त्रो का ज्ञान एव क्षत्रियोचित तेज प्राचार्य कृप, द्रोण, और उनके यशस्वी पुत्र अश्वस्थामा को छोड कर और किस मे एक साथ पाया जा सकता है। परशुराम को छोड कर द्रोणाचार्य की बराबरी करने वाला और कोनमा ब्राह्मण है ? यह अापस मे लडने झगडने तथा वाद विवाद करने का समय नहीं है। अभी तो हम सव को एक साथ मिलकर शत्रु का मुकाबला करना है। शत्रु सामने धनुष ताने खड़ा है और तुम सब लोग आपस मे झगड़ रहे हो, यह लज्जा को बात है ." : __ - पितामह के इस प्रकार समझाने पर आपस मे झगड़ रहे दुर्योधन, अश्वस्थामा आदि कौरव वीर शांत होगए। उस समय दुर्योधन ने कहा-'पितामह ! ग्राज बड़े हर्ष का अवसर है। पाण्डव अपनी-मूर्खता से फिर शिकार हुए। अजुन अनात वास की अवधि. पूर्ण होने से पूर्व ही प्रकट होगया।" " बेटा दुर्योधन ! अर्जुन प्रकट होगया वह ठीक है। पर उनकी प्रतिज्ञा का समय कल ही पूर्ण हो चुका। इस लिए तुम्हारा प्रसन्न होना व्यर्थ है।" -भीष्म जी ने कहा । "--नही पितामह अभी तो कई दिन गेप है।" ___ "-- तुम भूलते हो, दुर्योधन | पाण्डव कभी ऐमी भूल नह करने वाले।' "-परन्तु हमारे हिसाव से अभी तेहरवा वर्ष पूरा हुआ ह नहीं।" ___" "बेटी नन्द्र और सूर्य की गति, वर्प, महीने मोर १९
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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