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________________ जैन महाभारत T } पुत्र, इस राज्य को स्थिर एव वृद्धिगत करने मे पाडु राजा ही सर्व सर्वा थे, हम सब देख रहे है कि युधिष्ठिर भी अपने पिता के यशस्वी सर्वगुण सम्पन्न पुत्र है । और राजकुमारो मे है भी सबसे बड़े एवं प्रिय । श्रत जो जिस कार्य योग्य हो उसे ही वह अधिकार समर्पण करना उचित होता है । परन्तु यदि दुर्योधनादि कुमार पांडवो के साथ प्र ेम पूर्वक निर्वाह नही कर सकते और अपने लिए राज- ताज की माग करते है । तो सर्वश्रेष्ठ यही रहेगा, कि राज्य के दो भाग करके एक भाग पाडवी को, दूसरा भाग दुर्योधनादि को सौप दिया जाय । कुल की मर्यादा एव प्रतिष्ठा इसी प्रकार स्थिर रह सकती है । 1 विदुरादि ने भी गृह -क्लेशाग्नि, जो धार्तराष्ट्रो मे अन्दर ही अन्दर सुलग रही है - विस्फोट का रूप न धारण कर ले, इस वात को ख्याल मे रख कर जब भीष्म पितामह की सम्मति का समर्थन किया, तो धृतराष्ट्र के आनन पर सहसा हृदय की हर्षानुभूति चमकने लगी । और साधु साधु कहते हुए इस निर्णय का समर्थन किया । इसके पश्चात् राज्यविभाग एव अभिषेक आदि से सम्बन्धित श्रावश्यक विचार-विमर्श करके मंत्रणा को समाप्त किया । और उसे मूर्त रूप देने की क्रिया मे तत्परता से सब कोई जुट गये । १३ X X हस्तिनापुर मे राज्यभिषेक की तैयारियां जोर-शोर से प्रारम्भ हो गईं महलो- भवनो, राजपथो, वीथियो को खूब सजाया गया । चारो तरफ वन्दनवार, पुप्पमालाओ सुगन्ध वस्तुनों का साम्राज्य छा गया । झडियो, ध्वजाओ से सारा नगर सजी दुलहन समाज ग्राकर्षक बना हुआ था । गहनाईयां वज रही थी । भेरी पटह झल्लरी दुन्दुभिनाद से जब आकाश व्याप्त था तो शुभ घड़ी में पूर्व निश्चयानुसार भीष्म पितामह धृतराष्ट्र श्रादि कोरव कुल वरिष्ठों द्वारा युधिष्ठिर का यथाविधि राज्याभिषेक किया गया। इस प्रकार आधा राज्य पाडवो को और आधा राज्य दुर्योधनादि कौरवों के प्राचीन कर दिया = गया । X X
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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