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________________ बृहन्नला रण योद्धा के रूप मे २३५ राजकुमार उत्तर ने ऑखे मल मल कर अपने सामने इधर उधर दूर तक देखा और फिर बोला-"कहां है वीर अर्जुन ?" "वह मैं ही हूं।" वृहन्नला की यह बात सुनकर राजकुमार खोया सा रह गया। बृहन्नला वेषधारी अर्जुन वोला-"राजकुमार ! धवरायो नही। अभी अभी मेरी वात की सत्यता का प्रमाण मिल जाता है। भीष्म, द्रोण, योर अश्वस्थामा के देखते देखते कौरव सेना को मैं अभी ही हुरा दूंगा, सारी गौए छुडा लाऊगा और तुम्हे यशस्वी वना दूगा." यह मुनते ही उत्तरे हाथ जोडकर अर्जुन को प्रणाम करके वोला--"पार्थ ! प्रापके दर्शन पाकर मैं कृतार्थ हुआ। क्या सचमुच ही मैं इस समय यगम्वो धनजय को अपने सामने देखें रहां हू? जिन्होने मुझे कायर मे बीरता का संचार किया क्या वे विजयी अर्जुन ही है ? नादानी के कारण यदि मुझ से कोई भूल हुई तो आप इस के लिए मुझे क्षमा करदे ". . कौरव मेनागों को देखकर कही फिर उत्तर घबरा न जायऔर उसे विश्वास हो जाय कि वास्तव में अर्जुन वही है, अर्जुन ने पूर्व युद्धो की कुछ मुख्य मुख्य घटनाए मुनाना प्रारम्भ करदी। इस प्रकार उत्तर को सन्तुष्ट करके तथा उसका माहम बढाकर अर्जुन ने रथ कौरव सेना के सामने ला खडा किया। चूडिया उतार फेंकी और अगुलि प्राण पहन लिये। खुले खुले केश मवार कर कपडे से कस कर बांध लिए। जिन प्रभु का ध्यान लगाया और गाण्डीन धनुष सम्भाल लिया। इसके पश्चात गाण्डीव पर डोरी चढाकर तीन बार टकार किया। जिसे सुनकर कौरव सेना के कुछ वीन के दिल दहल गए और कुछ हठात चीग्व उठे-"अरे यह तो अर्जुन के गाण्डीव की व्कार हैं।" कोग्र सेना टंकार को दो दशानो को गंजा देने वाली ध्वनि ने स्वस्थ भी न होने पाई थी कि अर्जुन ने बटे होकर अपने देव दत्त नामक गाँव की ध्वनि की, जिसमे कौरव सेना पर्ग उठी। म में बनवली मच गई विगर्जन प्रागया ।
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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