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________________ बृहन्नला रण योद्धा के रूप मे २३५ भांगने वाले राजकुमार को भाग दौड करके वृहन्नला ने पकड ही लिया। राजकुमार हाथ जोड़कर वोला --"वृहन्नलामैं तेरे पंगे पडता हू। मुझे छोड दे। _ में युद्ध नहीं करूगा। मेरी गेखियो पर न जा। मुझे मेरी माता के पास चला जाने दे।" . . . "राजकुमार ! तुम्हे मैं लाई हूं। मुझे अपने साथ तुम लाये हो।- दोनो साथ पाये है तो साथ हो वापिम जायेगे। शत्रुओ से क्यो हमी उडचाते हो। क्षत्रिय कभी पीठ- दिखाकर नही भागाकरते। तुम इतता डरते क्यो हो ?' . __कहते कहते वृहन्नला ने उसे बलपूर्वक ले जाकर रथ पर बैठाः ही तो दिया। बेचारे उत्तर ने बहुत प्रयत्न किया कि बृहन्नला से छूटकर भाग जाये। पर वह अपने को छुडा न सका। परन्तु वह था तो बहुत ही घबराया हुआ । काँप रहा था। उसने वृहन्नला से कहा "मुझे छोड दो। मैं तुम्हे बहुत धन दूगा, सुन्दर सुन्दर वस्त्र दूगा। तुम जो चाहो मुझ से माग लेना। मुह मागी वस्तु दे दूगा। तुम तो बड़ी अच्छी हो। देखो, तुमने मेरा कहना कभी नही टाला। इस समय मेरी इतनी सी बात मान लो। मुझे नगर में ले चलो। कही युद्ध मे मुझे कुछ हो गया तो मेरी मा रो रो कर मर जायेगी। उसने मुझे बडे प्रेम से पाला है। .. मैं वालक ही तो है। बचपने मे बडी २ बाते कर गया था। मैंने कोई लडने वाली सेना देखी थोड़े ही थी। अब कौरवो की सेना देखकर तो मेरे प्राण ही निकले जा रहे है। बृहन्नला! मुझे इस संकट से बचानो। मेरी अच्छी वृहन्नला। मैं जीवन भर तुम्हारा उपकार मानेगा।" इस प्रकार राजकुमार उत्तर को वहुत घबराया हुआ जानकर बृहन्नला ने उसे समझाते हुए तथा उसका साहस बढाते हुए कहा "राजकुमार ! घवरामो, नही । तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा।" "नहीं, नहीं मर जाऊगा मैं तो। मुझ से नहीं लड़ा जायेगा।" "तुम तो वस घोडो को रास सभाल लो। इन कौरवो से मैं अकेली होलह लूगी । तम केवल रप होकते रहना। इसमें जरा भी न इरा। इस प्रकार निर्भय होकर डटे रहोगे तो मैं अपने प्रयान में
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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