SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दुर्योधन की चिन्ता कर्ण के हर्ष का ठिकाना न रहा। पूछा - "कैसे ? कहा हैं यह ? बताइये तो सही ।" " वे मत्स्य देश मे है ।" "यह कैसे ज्ञात हुआ ?" "कीचक को भीम तथा बलराम दो ही वीर मार सकते है । ग्रवश्य ही उसे भीम ने वध हुआ वह द्रौपदी हो बलराम का कीचक से कोई द्वेष नही | मारा है और जिस स्त्री के कारण उसका गी।" - दुर्योधन ने उत्साह पूर्वक कहा । "ठीक है । ग्राप बिल्कुल ठीक कहते है ।" - कर्ण बोला । उसी समय त्रिगर्त देश के वीर सुशर्मा ने कहा- "तो फिर ग्राप मुझे मत्स्य देश पर ग्राक्रमण करने दीजिए। यदि पाण्डव वहा छुपे है तो वे अवश्य ही विराट की ओर से युद्ध करने आयेगे । तत्र उन्हे हम पहचान लेगे और आप अपने मन्तव्य मे सफल होगे ।" दुर्योधन ने सुशर्मा की बात स्वीकार करली और उसने निय चय किया कि सुशर्मा मत्स्य देश पर दक्षिण की ओर से आक्रमण करे और जब विगट अपनी सेना लेकर सुशर्मा के मुकाबले के लिए जाये तो उसी समय में अपनी मेना लेकर उत्तर की ओर से छापा मार दूंगा । दूतर्फा युद्ध के द्वारा हम विराट का सारा गौधन श्रायेंगे। उसे परास्त कर उसका राज्य छीन लेंगे और यदि पाण्डव चहा हुए तो उनका पता लग जायेगा 1 माथ ही यदि पाण्डव युद्ध करने ग्राये तो उन्हें युद्ध स्थल पर मार कर निर्विघ्न राज्य करने का अवसर पा जायेंगे २१३ विराट नरेश ने दुर्योधन की मित्रता को सदैव इस लिए दुर्योधन तो उस पर वार खाये बठा था और मे बदला लेने का इच्छुक था । कर्ण प्रत्येक दशा मे दुर्योधन की प्रसन्न देखना चाहता था। इसलिए तीनो ने मिल कर पूरी योजना नामी और मेनात्री को तैयार रहने का आदेश दे दिया गया । X X X X- X X ጸ कराया था शर्मा विराट
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy