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________________ जैन महाभारत चरित्र से घृणा होने लगी और वैराग्य उसके हृदय मे अकुरित हो गया । फिर उसे माद्री की आंखो में मादकता दिखाई नहीं दी। उसके नेत्रों के सामने से विषय वासनानो का आवरण दूर हो गया। फिर उसने अपनो वैरागी आंखों से अपने चारो ओर देखा कही उसे मादकता दिखाई नही पड़ी किसी भी सौंदर्य ने उसे अपनी ओर आकर्षित नहीं किया। वह चारो और देखता हुआ घूमने लगा उसी समय उसे मुनि दिखाई दिए । वह उनके पास गया । क्योकि वह जानता था कि सच्चा सुख उन्ही के मार्ग मे है । मुनिगण का नेतृत्व करने वाले मुनि श्री सुव्रत जी थे, वे व्रतो से युक्त थे, सर्वाविधि ज्ञान के धारक थे, गुप्ति और समिति के पालन कर्ती एव षट काय के जीवो की रक्षा करने वाले थे। वे भव-तन भोगो से एकदम विरक्त थे और सदा आत्म चिन्तन मे ही लगे रहते थे। बारह भावनामो का चिन्तन करने वाले वाइस परीषहो को जीतने वाले उन मुनि जी की तपश्चर्या बहुत बढ़ी थी, इसी लिए उनका शरीर क्षीण हो गया था। वे जितेन्द्रिय व क्षमा के भण्डार थे । अक्षय सुख भोक्ता थे वे कभी स्त्रियो के तीक्षण कटाक्ष-बाणो के लक्ष्य नहीं हुए थे। उनका पक्ष उत्तम था। वे प्रतिक्षण ही कर्मों को निर्जरा करने में लगे रहते थे। उन्होने इन्द्रिय जन्य सुख की तिलाजलि दे दी थी। बड़े बड़े राजा महाराजा जिनके चरणो को सेवा करते थे उन महान योगी सुव्रत मुनि के चरणो मे पाण्ड्ड नृप जा गिरा। मुनि राज ने धर्म वृद्धि का आशीर्वाद दिया और कहाराजन् इस ससार वन में यह जीव सदा ही चक्कर लगाता रहता है। जिस प्रकार अरहट की घडी तनिक भी नहीं ठहरती वह घूमती ही रहती है । जो पुरुषार्थी पुरुष है वे सदा ही धर्म का सेवन किया करते है। वे अपना एक क्षण भी व्यर्थ नही खोते क्योकि निश्चय नही है कि एक क्षण मे क्या कैसा होता । धर्म दो भागों में बाटा गया है एक श्रावक धर्म और एक मुनि धर्म । धर्म के धारण करने कराने से ही जीव भव भ्रमण से छूट सकता है और कोई दूसरा उपाय नही है। योगी अथवा मुनि धर्म के पाँच महाव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति इस प्रकार तेरह प्रकार से पालन होता है।" इसके उपरान्त सुव्रत मुनि ने मुनि धर्म और श्रावक
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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