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________________ कीचक-वध - १८३ . एक पर्व के अवसर पर कीचक ने अपने घर बङ भोज का आयोजन किया और सीम रस तैयार कराया। -सौरन्ध्री को फासने के लिए ही यह षड़यन्त्र रचा गया था। रानी सुदेष्णा ने सौरन्ध्री को बुला कर कहा- "कल्याणी । - भैया के यहा' बहुत ही अच्छा सोम रस तैयार किया गया है। मुझे बड़े जोर की प्यास लगी है। तुम भैया के यहा जानो और एक कलश भर कर सोम रस ले आयो।" . . : . रानी का आदेश सुनकर सौरन्ध्री (ोपदी) का कलेजा धड़क उठा 1; बोली-'इस अन्धेरी रात्रि मे मै कीचक के यहां अकेली कैसे -जाऊ? मुझे डर "लगता है ।-- महारानी आपकी कितनी ही अन्य दासियां है । 'उन मे से किसी एक को भेज दीजिए। मुझे इस कार्य के लिए क्षमा ही कर दे तो बडी कृपा हो ।" "सौरन्ध्री। भैया के घर जाने मे तुम्हे डर - काहे का ? तुम राज महल की दासी हो । तुम्हारे ऊपर कोई निगाह उठा कर भी देख ले तो उसकी आफत या जाए । जाओ तुम्हे कोई भय की बात नहीं है।" सुदेष्णा बोली । ___ "आपने सदा मेरे ऊपर कृपा की है । क्या आज इस आदेश से मुक्त करके मुझे कृतज्ञ न करेगी ? वास्तव मे मै वहां जाते हुए घबराती हू । वरना आज तक मैंने आप के किसी यादेश को टालने की चेष्टा नही की।"-सोरन्ध्री ने नम्न शब्दो मे मे विनती की। सुदेष्णा ने क्रोध का अभिनय करते हुए कहा-"सौरन्ध्री ! तेरा यह साहस कि मेरी ही अवज्ञा करने लगी? भय का वहाना वनाकर क्यो धोखा देती है ? साफ साफ क्यों नहीं कहती कि तू जाना नहीं चाहती ?" सौन्धो ने नम्रता पूर्वक कहा-"महारानी जी ! लाप कृपया मेरी नियत पर सन्देह न कीजिए। में आपकी दासी हू पीर पापकी भाजा का पालन करना मेरा कर्तव्य है । परन्तु सत्य यह
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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