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________________ पाण्डव वच गए १५९ - "मैं आप के एक भाई को जिला सकता है। बताइये आप इन चार मे से किसे जीवित देखना चाहते है ?"-देव ने कहा ।। . युधिष्ठिर ने पल भर सोचा कि - किसे जिलाऊ? और, तनिक देरि वाद बोले- "मुझे तो, सब ही मे प्रेम है। फिर भी,, यदि आप एक को ही जिला सकते हैं, तो जिसका रग सावला पाखें कमल सी, छाती विशाल, और बाहे लम्बी लम्बी है और जो: तमाल के वृक्षः सा गिरा पडा है, वही मेरा भाई नकुल जी उठे " युधिष्ठिर की बात समाप्त होते ही भील रूपी देव ने अपने देव रूप मे प्रगट होकर कहा-"युधिष्ठिर । भीमकाय शरीर वाले, लिष्ट भीमसेन को छोडकर नकुल को तुम ने क्यो जिलाना ठीक समझा ?' मैंने तो मुना था कि तुम भीम को ही अधिक स्नेह करते हो। और नही तो कम से कम अर्जुन को ही जिला लो, जिस का रण कौशल सदैव तुम्हारी रक्षा करता रहा । इन दो भाईयो को छोडकर तुमने नकुल को जिलाने की इच्छा प्रकट की, इसका क्या कारण है ? युधिष्ठिर बोले-"देवराज । मनुष्य की रक्षा न भीम से होती है न अर्जुन से। धर्म ही मनुष्य की रक्षा करता है और विमुख होने पर धर्म ही से मनुष्य का नाश होता है। मेरे पिता को दो पत्नियों मे से एक मैं, कुन्ती पुत्र बचा हूं। मैं चाहता हू कि माद्री का भी एक पुत्र जी जाये। जिससे हिमाव बराबर हो जाए। इसी लिए मैंने नकुल को जिलाने की इच्छा प्रगट की। धर्म नीति यही कहती है।" पक्षपात से रहित राजन् । तुम्हारे सभी भाई जी उठेगे।- "इतना कह कर उस ने अमृत नीर वर्षाया और अचेत भ्रातामो में पुन चेतना लौट आई। . उस के पश्चात देव ने - द्रौपदी को लाकर देते हुए कहा"द्रौपदी हरण, मृग द्वारा अरणी ले जाना और आप सभी को मूछित करना यह मेरा ही काम था। मैं सौधर्म इन्द्र का प्रीति पान एक एक देव हूं। श्राप के धर्म ध्यान में मेरा ग्रासन डोला और मैंने
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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