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________________ १४२ "जैन महाभारत वहा पहुचना था कि गन्धर्वो, और कौरवों मे युद्ध हो गया। -घोर सग्राम छिड़ गया । आमने सामने के युद्ध मे कौरवो की सेना न रुक सकी। यह देख कर गधर्व राज को बहुत क्रोध आया और उसने माया युद्ध प्रारम्भ कर दिया। ऐसे ऐसे भयानक और विचित्र माया अस्त्र उसने बरसाये कि कौरवों की उनके सामने एक न चली। यहा तक कि कर्ण जैसे महारथियो के भी रथ और अस्त्र चूर चूर हो गए और भागते ही बना। अकेला 'दुर्योधन युद्ध मे डटा रहा। गधर्व राज चित्रांगद ने उसे पकड लियां और रस्सो से बांधकर अपने रथ मे डाल लिया। फिर विजय घोष किया। कौरवा की सेना के सभी प्रधान वीर रस्सों मे बध चुके थे, सेना तितर बितर हो गई थी। बचे खुवे सैनिको' ने पाण्डवों के आश्रम मे जा कर दुह ई मचाई और रक्षा की प्रार्थना की। बेचारे दुर्योधन का पासा पलट गयीं, वह गया था ठाठ दिखाने, और पाण्डवो का उपहास करने, बन गया बन्दी और स्वय उपहास का विषय । दुर्योधन और उसके साथियो के इस प्रकार अपम नित होने का समाच र सुन कर भीम को बड़ी प्रसन्नता हुई युधिष्ठिर से बोला"भाई साहब | गधों ने वही कर दिया जो हमें करना चाहिए था। दुर्योधन अवश्य ही हमारा मजाक उडाने आया होगा। सो उसे ठीक ही सज़ा मिली। गधर्व राज को उनके इस कार्य के लिए, वधाई भेजनी चाहिए।" . . . . . . :-- - युधिष्ठिर बोले -"भैया ! 'दुर्योधन के गधों के हाथो बन्दी । होने पर तुम्हे प्रसन्न नही होना चाहिए। आखिर को. ता अपना भाई ही है उसे गधर्वराज की कैद से छुडाना ही चाहिए। अपन कुटुम्ब के लोग कद मे पडे हो और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे यह कैसे हो सकता है । तुम्हे इसी समय दुर्योधन और उसके साथियो को मुक्त कराने जाना चाहिए।" --- -भीम झन्ला उठा, बोला- वाह भाई साहब । आप तो । देवतायो जैमी वाते करते है यह बात तो उसके लिए होनी चाहिए। जो हमें अपना भाई मानता हो। दुर्योधन तो हमे अपना बेरी समझता है। जिमने विष दे कर और गंगा में डुबा कर मुझे मार -
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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