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________________ लाख का महल पर छा गया। निंद्रामग्न लोग जाग उठे। सारे नगर मे खल बली मच गई। लोग तुरन्त महल की ओर भागे। पर जब तक कोई,वहा पहुचे, तो आग सारे महल में लग चुकी थी, -भवन का काफी भाग भष्म हो चुका था। हतप्रभ लोग हाहाकार करने लगे। रुई की भाति जलते भवन को देख कर लोग समझ गए कि महल किसी शीघ्र आग पकडने वाली वस्तु का बना है। वे उसे दुर्योधन का षडयन्त्र समझने लगे और सभी कौरवो के अन्याय । की आलोचना करने लगे। -- सभी समझ रहे थे कि पाण्डव इसी भवन मे भस्म हो गए। यह सोच कर उनकी छाती फटने सी लगी, सभी के नेत्रों से अश्रु और क्रोध की चिनगारिया निकल रही थी। ___ कोई कहता-"पाण्डवों की हत्या करने के लिए ही पापी कौरवो ने यह षडयन्त्र रचा था।" दूसरा कहता-"हम भी सोच रहे थे कि आखिर पाण्डवों के लिए कुछ दिन रहने के हेतु इतना विशाल भवन क्यो वनाया जा रहा है। लो यह षडयन्त्र था इस भवन की पृष्ठ भूमि मे।" तो कोई कहता-- ‘पाण्डवो के शत्रुओ ने ऐसा अन्याय किया है, जिसका उदाहरण कही भी नही मिलता " इसी प्रकार क्षुब्ध जनता अनाप शनाप कहती रहीं। जो जिसके मन मे आया क्रोध वश वही कहता। चारो ओर हाहाकार हो रहा था। लोगो के देखते देखते सारा भवन जल कर ख क हो गया। पुरोचन का मकान और स्वय पुरोचन भी आग की भेट हो गया। पाण्डवो की मृत्यु का भ्रम होने से सारा नगर विहल हो ( गया। सारे नगर में लोग पाण्डवो के गुणो को याद कर कर के रोते . रहे। लोगो ने तुरन्त ही हस्तिनापुर मे खवर पहुंचा दी कि पाण्डव जिस भवन मे रहते थे, वह जल कर राख हो गया और महल का कोई भी व्यक्ति जीता नही बचा।
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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