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________________ दुर्योधन का कुचक्र यह स्थान खतरनाक है। यह शीघ्र आग पकडने वाली वस्तुओं को विशेषतया, लाख को मिट्टी में मिलाकर बनाया गया है. फिर भी हमे इस रहस्य को अपने मन मे छुपाकर रखना चाहिए। विचलित नहीं होना चाहिए । पुरोचन को भी यह ज्ञान न हो कि हमे महल का भेद ज्ञात हो गया है। विदुर चाचा ने यहां पहुंचने के समय ही मुझे महल का रहस्य सांकेतिक भाषा में बता दिया है । परन्तु अभी शीघ्रता मे हम से कोई ऐसी बात न करे जिस से पुरोचन को तनिक सा भी सन्देह हो जाय।" युधिष्ठिर की इस सलाह को सभी ने मान लिया और उसी लाख के भवन मे रहने लगे। इतने मे विदुर जी का भेजा हुया सुरग बनाने वाला एक कारीगर वारणावत नगर मे आ पहुचा । उस ने एक दिन पाण्डवो को एकान्त मे पाकर के अपना परिचय देते हुए कहा-"आप लोगो की भलाई के लिए हस्तिनापुर से अपने इनके द्वारा विदुर ने युधिष्ठिर को साकेतिक भाषा मे जो उपदेश दिया है उसको मैं जानता हूं। यही मेरे सच्चा होने का प्रमाण है। आप मुझ पर भरोसा रक्खे । मैं आपकी रक्षा का प्रवन्ध करने के लिए ही यहा आया हूं।" इसके पश्चात वह कारीगर महल में पहुंच गया और गुप्त रूप से कुछ दिनो मे ही उस ने एक सुरग वना दी। इस के रास्ते पाण्डव महल के अन्दर से नीचे ही नीचे महल की चहार दीवारी और गहरी खाई को लाघ कर और बच कर बेखटके बाहर निकल सकते थे। यह काम इतने गुप्त रूप से हुआ कि पुरोचन को अन्त तक इस बात की खबर न होने पाई। पुरोचन ने लाख के भवन के द्वार पर ही अपने रहने के लिए स्थान बनवा लिया था। इस कारण पाण्डवो को सारी रात हथियार लिये चौकन्ना रहना पड़ता था। कभी कभी वे सैर करने के बहाने आसपास के वनो मे घूम कर पाते और वन के रास्तो को अच्छी प्रकार देख लेते। इस प्रकार पड़ोस के प्रदेश और जंगली रास्तो का उन्होने खासा परिचय प्राप्त कर लिया
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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