SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तुत ग्रन्थ लेखक के विषय मे शक्ति एव मौलिक चिन्तन शीलता के परिचायक है । मानव जीवन को नवीन मोड देने नवीन दिशा दिखाने विकास पथ पर बढ़ने एव प्रगति करने के लिए सहयोग देने में पूर्णतः समर्थ है आपने श्रमण सघ का जो कार्य एव निर्माण किया वह अद्वितीय है। अतीत काल मे श्रमण सधीय निर्माण में आपने भरसक प्रयास किया वर्तमान मे अत्याधिक प्रयत्न कर रहे हैं और भविष्य मे अत्यत चेष्टा करेंगे । ऐसी शुभाशा है। . . . शासन देव से प्रार्थना है कि आपको दीर्घायु दे आपकी छत्र छाया मे रहते हुए चतुर्विध सघ प्रगति कर रहा है आपका आशीर्वाद और आपका साया करोडो बर्ष तक जैन समाज और अपनी शिष्य मडली पर रहे यही मेरी एक हादिकाभिलाषा एव कामना है। - विशेष परिचय जानने के लिए जैन महाभारत के तृतीय भाग मे पढ़ें। हार्दिक उद्गार जैन धर्म दिवाकर पूज्य वर भव्य जीवो के तारण हारे है। आशाओ के केन्द्र हमारे निर्मल शशि उजियारे हैं । शान्ति सिंधु क्षमा ‘दया और ज्ञान गुणी भड़ारे है। सहन शीलता करुणानिधि अद्भुत उज्ज्वल पुण्य सितारे हैं ।। तेजस्वी "दिनकर" प्रोजस्वी इन्दु प्रेम मन्दाकिनी बहाते हैं। राजे और महाराजे सारे चरणन शीष निवाते हैं। पंजाब प्रान्त मन्त्री क्या-क्या गुण आपके गायें हम । गुरु देव आपके चरणन मे श्री सादर शीष झुकाये हम ॥ प्रधानाचार्य भारतभूषण जगतविख्यात पूज्य सोहनलाल जी म०कीजर पजाव केशरी जैनाचार्य प्रकांड विद्वान पूज्य काशीराम जी म० की जर श्रमण संघीय मत्री कवि सम्राट प०रत्न पूज्य शुक्ल चन्द्र जी म०कीज प्रोम शान्ति ! शान्ति !!' शान्ति !!! भवदीय .-मुनि सन्तोष "दिनकर" प्रधानाचार्य संवत् 28 महावीर सवत 2489 भादव शुक्ला पचमी 23 अगस्त सन् संवत् २०२० 1963 श्री महावीर जैन भवन अम्बाला शहर (पंजाब)
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy