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________________ शुद्धिपत्रम् __ पृष्ठ पक्ति अशुद्ध शुद्ध | पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध शुद्ध ६ २५ आत्मघामक आत्मघातक | ५८ २ जैसा जैसी ६ १ पूव पूर्व , ६ अकस अकुश १० २४ सिंहासन ध्वज , ११ रस इस १८ ५ लेंगे लगे २७ कालाप्रिय कलाप्रिय १३ ३ सतप्त सतप्त ३१ अपने अपनी १४ १५ तीसरे तीसरा ३१ य तो हबहुत यह तो बहुत ,, १७ मनपयय मनपर्यय ४ कुलक्षणा कुलक्षणी ३२ २२५०० २५०० २६ स्वरुप स्वरूप १५ फलस्वरुप फलस्वरूप २८ अगारक अगारक १६ बहध्वज वृहद्ध्वज ८२८ प्रज्ञति प्रज्ञप्ति १६ १० कुशद्य कुशाग्न ६६ ४ श्रेष्ट श्रेष्ठ २० सवसपन्न सर्वसपन्न ६७ १० शान्तवना सान्त्वना २० २ वश वश ६६ ३० द्रत द्रत २७ २ बलता प्रबलता १०५ २२ ज्ञान गान १४ रक्षणायच च रक्षरणाय |, २६ श्रति श्रुति ६ अन्तराम अन्तराय | १०६ १५ अरणगार अरणगार ३७ ३ सस्कार सत्कार ११० ४ कल कब । २१ ऐसा ऐसा है ११३ ३ इनमें इनमें से ३ जीव जीवे , २६ होता होता है १४ रागी रोगी १२३ २८ सवार्था सर्वार्थ ४० ३१ उन' उत्तर १३४ ५ म ४३ १५ पुरुषो पुष्पो १४० १३ कुल सम्बन्ध कुलकेसम्बन्ध ४ मझदार मझधार १४१ २ सन्देह सघर्ष ", १० दूसरे दूसरे १४४ २६ लोग लोगो ५४ २४ लो तो १४५ २५ विला विद्या ५६ १२ लो ली , सीखते सीखने 1 ॥ २६ कर फर , मिथा मिला ཟླ་ EEEEEEEEER
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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