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________________ ३० जैन महाभारत बड़े बर्तन बनाता है उसी भांति यह कर्म भी जीव को छोटे-बड़े कुल में ले जाकर पैदा करता है। इस कर्म के उद्भव का आधार मद है, यह आठ प्रकार का कहा गया है यथा-जाति मद, कुलमद, बल मद, रूपमद, तप मद, लाभमद, ऐश्वर्य मद और सूत्र मद । उपरोक्त उच्च जाति आदि प्राप्त करके जो इन पर मद करता है वह उस प्रकृति का संग्रह करता जिसके फलस्वरूप आहार-व्यवहार और आचारहीन कुल मे उत्पन्न होता है और जो प्राणी उच्च एव सुन्दर वस्तुओं के मिलने पर इठलाता नहीं, मदमे झूमता नहीं वह श्रेष्ठ गोत्र-कुल में जाकर जन्म लेता है। अतः प्राणी को इष्ट पदार्थों को पाकर उन्मत्त नहीं हो जाना चाहिए क्योंकि भौतिक पदार्थ परद्रव्य है आत्मद्रव्य नहीं। परद्रव्य का मूलत. गुण निर्माण और सहार है। इन का सयोग तथा वियोग शुभाशुभ कर्म प्रभाव. से होता है । जब तक संयोगज कमे प्रकृति का उदय रहा वस्तु की प्राप्ति होती रही और जब वियोग जप्रकृति उदय मे आई तो पास रही हुई भी का वियोग होगया अर्थात् हाथ से चली गयी। इसीलिए इनको क्षणिक और क्षणभगुर कहा गया है। क्षणिक पदार्थ पर मद करना, इठलाना कदापि हितकर नहीं हो सकता। . __पूर्वकृत शुभाशुभ कर्म प्रभाव से वस्तु की प्राप्ति होती है, हे राजकुमारी, वस्तु का प्राप्त होना बुरा नहीं है उसके सयोग से अनेकों का उद्धार एव उत्थान हो सकता है किन्तु यह प्राप्तकर्ता के उपयोग पर निर्भर है। प्राप्तकर्ता यदि अपनी वस्तु समाज, देश व धर्महित अपेण कर देता है तो वह वस्तु का सदुपयोग है और वह उसके पुण्योपार्जन मे आधार है। इसके विपरीत वस्तु का उपयोग अपने तथा दूसरे के जहां विनाश का कारण बन रहा हो तो समझना चाहिये कि वह वस्तु का दुरुपयोग है और वह पाप बध का कारण है। यो तो ससार की प्रत्येक वस्तु मद उत्पन्न करने वाली है केवल मदिरा आदि मादक द्रव्य ही नहीं। जिस प्रकार कि आचार्यों ने कहा है-"बुद्धि लुम्पति यद् द्रव्य मदकारि तद् उच्यते" अर्थात जिस वस्तु से बुद्धि का विनाश होता हो वह वस्तु मदकरि ( मदिरा जैसी) कही जा सकती है। '
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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