SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 560
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन महाभारत mmmmmmmmmmmmmarimmmmmmmmmmmmmmmm है । बता तू ने उस सुन्दरी का क्या किया। "कौन सुन्दरी ?" "जो अभी अभी इस कमरे में थी।' 'यहाँ तो मेरे अतिरिक्त और कोई नहीं था।' 'इतना झूठ ?' क्रोध के मारे गरज कर सत्यभामा बोली। 'मुसीबत यह है कि आप की दृष्टि ने धोखा खाया और आप मुझे सुन्दरी समझ कर उपवन से ले आई । इसमे मेरा कुछ अपराध नहीं, अपराध तो आप की दृष्टि का है।" शाम्बकुमार ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा। उसी समय प्रद्युम्न कुमार भी वहां आ गया और वह भी शाम्ब कुमार का साक्षी हो कर कहने लगा- 'माता जी ' मै स्वयं आश्चर्य चकित था कि आप हाथी पर शाम्बकुमार को ला रही थीं, स्वयं चवर ढोल रही थीं। और महल में लाकर नाना प्रकार के भोजन खिला रही थीं। सत्यभामा और सुभानु को क्रोव भी था और श्राश्चर्य भी। वे अपने कानो पर विश्वास करे या ऑखों पर; उन की समझ मे ही यह नहीं पा रहा था। ___ तभी प्रद्युम्न कुमार ने कहा-माता जी । आप मेरा विश्वास करे, आप हाथी पर शामबकुमार को ही लाई थीं और इसीलिए शाम्बकुमार महल में आ गया, वरना न आता। पिता जी ने कहा था कि आप यदि शाम्ब कुमार को हाथी पर महल मे ला सकें तो शाम्बकुमार वापिस आ सकता है वरना नहीं. पिता जी की शर्त पूर्ण हुई और आप की कृपा से शाम्ब कुमार महल मे वापिस आ गया।' प्रद्युम्न कमार की बात सुनकर सत्यभामा इस रहस्य को समझ गई, उस ने कहा- 'तुम भी अपने पिता की तरह ही पूरे ठग हो । - तुम्हीं ने यह सारा स्वांग रचा और मुझे ठग लिया ।' वह मन ही मन
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy