SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 555
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शाम्ब कुमार ५३१ wwwwwwwwwwwwwwron में उसके था मत्री । उपवन मे सैर करते करते उसने एक वृक्ष के नीचे बैठी एक परम सुनदरी को देखा । उसे देखना था कि सुन्दरी के रूप का जादू सुभानु के अग अग पर प्रभाव कर गया वह उसके लावण्य तथा अनुपम रूप को निहारता ही रह गया। कितनी ही देर तक वह टकटकी लगाए देखता रहा । जितना ही वह अधिक उसे देखता,उतना ही नशा उस पर छाता जाता । अप्सरा समान सुन्दरी रूप पर दृष्टि लगाए लगाए ही वह मूर्छित हो गया। मत्री ने उपाय करके उसकी मूर्छा भग की और उसे अपने साथ महल में ले आया। पर उसके नेत्रो मे तो उसी सुन्दरी का रूप बस गया था। वह उसके लिए व्याकुल था। सत्यभामाने अपने कु वर को खाया खाया सा देखकर पूछा-"तुम कुछ खोये खोये से हो । क्या कारण है ?" अभी सुभानु ने कोई उत्तर नहीं दिया था कि मत्री जी श्रा गए, उन्होने कहा- "रानी जी | उपवन मे कु वर जी को मूर्छा आ गई थी। इन्हें विश्राम कराइये।" | सत्यभामा यह सुनकर चकित रह गई वोलो--"मुळ। मूर्खा क्यों आ गई थी ? क्या कुछ तबियत खराब है ? क्या हुत्रा है इसे ? कोई कारण तो हुआ ही होगा।" "रानी जी । जहा तक मैं समझता हू उपवन में बैठी एक अप्सरा के रूप को देखकर कु वर मूर्छित हुए थे।" ___मत्री जी की बात सुनकर सत्यभामा ने पूछा-"क्या किसी अप्सरा को देख लिया है इसने ? क्या वह इतनी रूपवतो थी कि कु वर मूर्छित हो गया ?" "हा थी तो परम सुन्दरी।" उत्तर सुनकर सत्यभामा ने क वर को बैठाया और उससे भी वही प्रश्न किया- "कौन थी वह ? क्या वह इतनी सुन्दर थी कि उसके रूप को देखकर ही तुम मूर्छित हो गए ?" __"माता जी । जीवन भर मैंने ऐसा रूप नहीं देखा। वह अवश्य ही आकाश से उतरी कोई देवागना होगी, उसके रूप में कोई जादू था।" सुभानु वोला। ___ सत्यभामा को बहुत आश्चर्य हो रहा था, उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई स्त्री इतनी रूपवती भी हो सकती है कि जिसे देख
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy