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________________ ५२० जैन महाभारत होगा। एक बार क्रीड़ा में शाम्ब कुमार की दक्षता एव बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर ही प्रद्युम्न कुमार ने वह वचन दिया था। वचन दे चुका था अतः शाम्ब कुमार की मनोकामना पूर्ण करने की उसने प्रतिज्ञा कर ली। और उसी समय श्रीकृष्ण के पास जाक उनके चरण स्पर्श करके कहा-"पिता जी। आज आपसे कुछ मागने आया हूँ । सोलह वर्ष तक मैंने आपको कोई कष्ट नहीं दिया । आज मुझे आपसे कुछ लेना है।" श्री कृष्ण के अधरो पर स्वभाविक मुस्कान नृत्य कर गई , बोलेप्रद्युम्न । तुम्हें जो चाहिए मांग लो । मै तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूरी करूगा।" वचन लेकर प्रेदयुम्न कुमार ने कहा-"पूज्य पिताजी | मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए । चाहिए शाम्ब कुमार के लिए। आप उसे छः मास के लिए द्वारकापुरी का राज्य सौप दे।" बचन बद्ध होने के कारण श्री कृष्ण ने बात स्वीकार कर ली। पर वे बोले- “वचन दे चुका इस लिए द्वारकापुरी का राज्य ६ मास के लिए शास्भ कुमार का हुआ । परन्तु मुझे इस मे सन्देह है कि वह राज्य काज को नीति अनुसार कर सकेगा।" किन्तु प्रद्य म्न कुमार को पिता जी की शंका निभूल प्रतीत हुई ।शाम्ब राज्य करने लगा। श्री कृष्ण का न्याय एक दिन राजधानी निवासियो ने श्री कृष्ण से आकर गुहार की-“प्रभो । हमारी लाज मान की रक्षा कीजिए।'' "क्यो क्या हुआ ? किस दुष्ट से तुम त्रसित हो ?' "प्रभो ! आपके पुत्र शाम्बकुमार ने अनीति पर कमर बांध ली है।" नगर वासियो ने कर बद्व करकं कहा। श्री कृष्ण को सुन कर बहुत दुख हुआ। उन्होने पूछा-"क्या किया है उसने ? स्पष्टतया निर्भय हाकर कहो।" "अभय दान चाहते हे महाराज।" "जो बात है, स्पष्ट कहा, भय को कोई बात नहीं।" श्री कृष्ण की ओर से आश्वासन मिल जाने पर वे बोलेप्रभो ! शाम्ब कुमार विषयानुरागी हो गए है। उन्होने नागरिकों की
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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