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________________ जैन महाभारत __ "हाय तुम्हारे पुत्र ने मुझे कहीं का न रखा।" रानी ने चीत्कार करके आते स्वर मे कहा । नृप सुनते ही हक्का बक्का रह गया, "कुछ कहो भी क्या किया है उस ने ?' किसी भयंकर आशका से घबराकर उस ने पूछा। रानी सिर पीट कर बोली- 'तुम्हारे लाडले न मेरी लाज पर डाका डालने का साहस किया । क्या यह कुछ कम दुष्कमे है ? नप ने सुना तो नस के मन पर भयंकर कुठाराघात हुआ, वह सुनते ही आपे से बाहर हो गया, उस के नेत्र जलने लगे। उसने कहा-"क्या प्रद्युम्न कुमार ने यह नीचता की ? हां, हां प्रद्युम्न ने ही मेरी यह दुर्दशा बना डाली। जब मैंने उस की दुष्टता को अस्वीकार कर दिया तो वह मुझ पर क्र द्ध बाघ की भांति झपटा, जैसे तैसे मैं अपनी लाज बचा पाई। मैंने शोर मचा दिया, तुम्हारे भय से वह यहाँ से भाग गया। हाय । क्या इसी दुष्टता के लिए मैंने उसे पाला था ' रानी करुण क्रन्दन करने लगी। नृप का रोम रोम जल उठा। उसने तुरन्त अपने पुत्रो को बुलाया और आदेश दिया--"प्रद्युम्न कुमार का सिर काट कर अपनी माता के चरणों में अर्पित करो । उस दुष्ट को उसकी दुष्टता का मजा चखा दो।' पिता की ऐसी आज्ञा सुनकर उन्हे आश्चर्य भी हुआ और हर्ष भी। क्योंकि कुमार युवराज था, सभी को प्रिय था पर अन्य राजकुमार उस के यश से जलते थे, वे उस से ईर्ष्या करते थे। ___ज्यों ही राजकुमार प्रद्युम्न कुमार का वध करने के उद्देश्य से चले, नप ने उच्च स्वर में कहा-"ठहरो " सभी राजकुमार रुक गये, अन्य आदेश सुनने के लिए। "प्रदम्युन कुमार युवराज है । सारी प्रजा उस से प्रभावित है, उस के यश और कीर्ति ने सभी पर जादू कर दिया है। इस प्रकार उस का वध करना राज्य के लिए उपयुक्त नहीं होगा। अत वध करो पर गुप्त रीति से । उसे दण्ड दो पर प्रजा के विद्रोह करने का कारण मत बनने दो।" नप की इस आज्ञा को सुन कर राजकुमार सोचने लगे, गुप्तरीति से कुमार का वध करने का उपाय । सभी राजकुमार प्रद्युम्न कुमार के पास पहुँचे और महल से बाहर चल कर स्नान करने व क्रीड़ा हेतु चलने का आग्रह किया। प्रद्युम्न कुमार
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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