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________________ :-: - : पर इ- - - -- आर -3. 5 .. चारों और सरकारने चन्द्रन : -:-:- : __ कर रेत कई गया. कन्द ! रहा इनमें से एकमसानोड़ कर कई - - - अहनिम बलत्री जिह्वा पर व्हनार - आता उनमें पूछना चन्द्रामा म्हाईन : --- __ इयर मधु नृप इन्दुप्रभा के सार धर्म, न्याय. राजकाज आदि - : :: मान्ति वह उसी में लीन रहता एक दिन सिपाही एक क न :- -- नृप को जो महल में बना .. एक घोर पापी दरबार में - ---- करने के लिए पधारें। - - - अपराध किया है इसके "महाराज :--:- -.--..- सिपाही बोला। "प्रमाण' पास ही नम: सुनते ही आदेश दि- आदिन 14 के पुकार जीवित बदमागमा आदेशकाल इला गया । फिर भी आते ही इन हिंग-प्राशनाय । श्राज इतनी देश पE राजा ननुलाने हम उत्तर दिया-रानी, प्राज पफ . दण्ड की व्यन्शाने प्राण एक अपराधी
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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