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________________ ४७२ जैन महाभारत के नीचे पद्म शिला पर बैठा दिया। और एक दासी द्वारा सत्यभामा को वहाँ बुला लिया। जब सत्यभामा आई तो श्री कृष्ण पुष्प-पौधों की ओट में छुप गये । सत्यभामा ने इधर उधर देखा, पर श्री कृष्ण को कहीं न पाया। अचानक उसकी दृष्टि अशोक तरु नीचे पद्मासन पर बैठी रुक्मणि पर पड़ी। यह अद्भुत रूप देखकर वह समभी कि यह बन देवी है जो यहा अनायासही प्रगट हो गइ है । सम्भव है कि नर देवी, नाग कुमारी ही हो, जो भी हो है यह देवी ही। अतएव अनायास ही देवी मिली है क्यों न इससे मन चाहा वर मांगू। यदि मेरी मनोकामना इसी के वरदान से पूर्ण हो जाय तो क्या हर्ज है । यह सोचकर वह आगे बढ़ी। उसने अपने हाथ जोड़ लिए और बोली- "हे देवी, तुम बड़ी कृपालु हो, दुखियो के दुख हरने वाली हो, तुम करुणा की सरिता हो, तुम मे अपार शक्ति है । मुझ अभागिन का भी दुख हरो। मुझे वर दो कि हरि प्रभु मेरे वश में आ जावें, वे मेरे ही हों, उनके हृदय में मेरे प्रति अनुराग जागृत हो जाय । माता ! मेरे ऊपर दया करो, मेरे जीवन के सन्ताप हरो, मैं हरि प्रेम की प्यासी हूँ। वे मेरे महल में आयें और मुझ से असीम प्रेम करे, यदि मेरी यह मनोकामना पूर्ण हो जाये और श्री हरि मेरी सौक के घर न जाएं तो मै जानू कि तुम करुणा कारिणी और दुखियों का सहारा हो ।' इतना कहकर वह आगे बढ़ी और रुक्मणि के पैर पकड़ लिये और नेत्रों में अश्रु लाकर कहा-हे माता, मुझे वर दो, मेरी मनोकामना पूरी करो, मुझे वर दो।" देवी रूपी रुक्मणि के आतुर नेत्रों में आसू छल छला आये वह कुछ न कह सकी । जब मत्यभामा अपने स्वार्थ के लिए देवी से वरदान मांग रही थी, उसी ससय श्री कृष्ण पुष्प पौधो की ओट से निकल आये, बोले-हॉ, हॉ देवी से वर मॉग ले । क्या पता फिर ऐसा अवसर मिले या न मिले । इस देवी जैसी और कोई देवी नहीं है, यह तुझे मन इच्छित फल देगी । इस अद्वितीय करुणा कारिणी गुणवती देवी की यदि तू सारे जीवन सेवा करे तो विश्वास रख तेरे सारे दुख दूर हो जायेंगे। देख मैं तुझे बताता हूं। आज से तू क्रोध और ईर्ष्या को अपने पास भी न फटकने देना, किसी से कभी न कुढ़ना किसी का अनादर न करना, इस देवी को अपनी विरोधी मत समझना, यह कर - लिया तो विश्वास रखयदि तेरी मनोकामना अवश्य पूरी करेगी।"
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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