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________________ ४६४ जैन महाभारत wwwxxxmmmmmmmmmam ___ जब शिशुपाल को इस बात का पता चला तो उसे हर्ष ही हुआ। उस ने रुक्म से कहा----"रुक्मणि को देव पूजन की आज्ञा क्यों नहीं दे देते ? इस मे तुम्हे कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।" । ___ "तुम्हारी स्वीकति मिल गई, बस यही मैं चाहता था। क्योंकि मुझे डर है कि कहीं कुछ गड़बड हो जाय तो तुम मुझे दोष न दे दो। देखो मैंने सारे नगर को शिविर बना रखा है।" रुक्म बोला। शिशुपाल को बडा हर्ष हुआ यह जान कर कि रुक्म उसके लिए इनना कठोर व्यवहार कर रहा है। उसे रुक्म के अपने प्रति स्नेह का विश्वास हो गया। रुक्म ने शिशपाल की सहमति से रुक्मणि को देव पूजन की आज्ञा दे दी। और कितनी ही सखियां तथा धाय माता उसके साथ चल दीं। सखियां गीत गाती हुई जा रही थीं, रुक्मणि के हाथ में पूजा का थाल था। यह सभी कुछ यह विश्वास दिलाने के लिए किया गया था कि वास्तव में रुक्मणि देव पूजन को ही जा रही है । पर रुक्मणि जिस देव के दर्शन को जा रही थी, यह देव द्वारिका नगरी से उसे लेने के लिए आया था । उसके साथ बलराम भी थे । और (नगर से दूर उनकी सेना भी तैयार खड़ी थी जो समस्त प्रकार शस्त्र अस्त्रों से लैस थी।) श्री कृष्ण रुक्मणि की प्रतिक्षा में थे, वे पहले ही उपवन मे पहुंच गए थे। रुक्म ने देव पूजन के लिए जाती हुई रुक्मणि के पीछे सेना भी लगा दी थी ताकि उपवन में किसी प्रकार की गड़बड़ न हो जाय । परन्तु नगर से निकल कर उपवन से कुछ दूरि पर ही धात्री ने सैनिकों को सम्बोधित करके कहा—'तुम पीछे पीछे क्यों आ रहे । हो । रुक्मणि राज कन्या है कैदी नहीं है । वह देव पूजन करने जा रही है, सेना देव पूजन की श्रेष्ठता को भंग करती है । देवता रुष्ट हो • जायेगे । अतः तुम यहीं रुको।" सेना रुक गई। फिर आगे जाकर उन्होंने सखियों से कहा-"अच्छा अब हम लोग भी यहीं रुक जाए ताकि राजकन्या एकान्त मे पूजन कर सके। न जाने वेचारी देवता से क्या क्या मांगे, हमारे सामने मुख खोलते लज्जा अनुभव करेगी।"
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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