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________________ जैन महाभारत और इसकपडा, क्या भाषा बोलेगमार राजा मान लिया गया । इधर पर्वत की माता राजा वसु के पास जा पहुची और वोली कि "बेटा बचपन के उस उपकार का बदला चुकाने का अवसर आज आया है, इस शााथ मे तुम मेरे पुत्र पर्वत के पक्ष मे निर्णय देना।" वसु ने कहा -माता यह कैसे हो सकता है क्योकि सच्चा अर्थ नारद का ही है मै असत्य अर्थ का प्रतिपादन कर नरक--गामी नहीं बनना चाहता। पर्वत की माता बोली-अपने दिये हुए बचन का पालन करने के लिए तुम्हें ऐसा करना होगा, अन्यथा तुम्हे वचन-भंग का पापलगेगा और इसक कारण भी तुम स्वर्ग मे नहीं जासकोगे । इस पर राजा बड़े असमजस मे पड़ा, क्या करे क्या न करे । अन्त में उसने निश्चय किया कि वह ऐसी मिश्र भाषा बोलेगा जो असत्य भी न हो और गुरू माता को बात भी रह जाय । तदनुसार राजा वसु ने भरी सभा मे कहा कि-शास्त्रानुसार तो अर्थ वही है जो नारद कहता है पर गुरु ने इसका अर्थ वही बताया था, जो पर्वत कहता है। अर्थात् अज शब्द का अर्थ बकरा भी और तीन साल पुराने जो भी है। राजा वसु के ऐसा कहते ही उस वसु का सिंहासन हिल उठा और तत्काल वह भूमि पर गिरकर नीचे सातवीं नक में जा पहुंचा । इस राजा वसु के बृहध्वज नामक पुत्र हुआ। बहद्ध्वज ने अपने पुत्र सुबाहु को राज्य सौंप और आप तप के लिये वन मे चले गये। राजा सुबाहु का पुत्र दीर्घबाहु हुआ। दोघेबाहु का वज्रबाहु, उसका अभिमान, अभिमान का भानु, भानु का यवि, यवि का सुभानु और उसका भीम इत्यादि अनेको भगवान् मुनिसुव्रत के तीर्थ मे हुए और अपने-अपने पत्रों को राज्य दे सेबी ने सयम का आश्रय लिया । भगवान् मुनिसुव्रत का तीर्थ (समय) छ लाख वर्ष तक रहा। । OOOOON
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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