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________________ जैन महाभारत "पिताजो ! आपकी बुद्धि बुढ़ापे ने भ्रष्ट कर दी है। आप कुछ सोचने समझने योग्य नहीं रह गए। अच्छा हो इन बातो में आप हस्तक्षेप ही न किया करें। मैं अब समझदार हो गया हूं। मैं स्वयं इन सब कार्यों को कर सकता हूं।" रुक्म ने आवेश मे आकर कहा । बेचारे भीष्मक चुप हो गए। वे समझ गए कि अब अधिक कुछ बोलना व्यर्थ है अतएव वे यह कह कर कि "मैं तो एक कोने में जा बैठता हूँ जो तुम्हारा जी चाहे करा।" दूसरी ओर चले गए । मन्त्री जी ने समझ लिया कि जब रुग्म ने अपने पिता जी की ही एक न सुनी तो फिर हमारी क्या बिसात है, अतः वे भी चुप रह गए। शिशुपाल के साथ विवाह का निश्चय तब रुक्म ने माता से कहा-'मां! मुझे लगता है कि पिता जी शिशुपाल जैसे परम प्रतापी, यशस्वी, महान योद्धा और रूपवान युवक के साथ मेरी बहिन का विवाह न करने पर तुले है । कहीं उन्होंने उस ढोर चराने वाले से ही रुक्मणि का विवाह कर दिया तो मैं कहीं मुंह दिखाने योग्य न रहूँगा।" ___ "नहीं ! मै तेरे साथ हूं बेटा। तू जहाँ कहेगा वहीं रुक्मणि का विवाह होगा । मैं अपने बेटे की भला नाक कटने दे सकती हूं। आंखों देखे रुक्मणि को गड्ढे में मैं न धकेलने दूगी। तेरे पिता जी ता अब इस कार्य से छुट्टी पा गये । अब तुझे और मुझे ही सब कुछ करना है। शिशुपाल के साथ अपनी बहिन का विवाह रचा। मेरे जीते जी इस विवाह को कोई नहीं रोक सकता।" रानी के द्वारा प्रोत्साहन मिलने से रुक्म गद् गद् हो उठा और अपनी योजना पूर्ति के लिए तुरन्त विवाह के लिए आवश्यक कार्य पूणे करने को तैयार हो गया। बोला-माता जब यह सारा बोझ अपने सिर पर आ ही गया है तो हमें शीघ्र ही विवाह सम्पन्न कर डालना चाहिए। ताकि पिता जी को भी कोई रोड़ा अटकाने का अवसर न न मिले और वे यह भी न कह सकें कि उन का सहयोग न लेने से विवाह में इतनी देरि हो गई। उनके तानों से बचने का एक ही उपाय है कि निमंतिया को अभी बुला लिया जाय और लग्न पूछ लिया "रानी ने स्वीकृति दे दी। तुरन्त नैमित्तिक को बुला लिया गया और लग्न निकलवाया । नैमित्तिक ने विवाह के लिए माघ शुक्ला अष्टमी माघ कृष्णा अष्टमी ऐसा भी उललेख पाया जाता है ।
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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