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________________ कृष्ण वध का प्रयत्न ४४१ राजा उग्रसेन को भी सूचना दे दी गई। वसुदेव ने सभी भूले बिसरे साथियों, सैनिकों और योद्धाओं को सूचित किया । सारी सेना एकत्रित की गई । और यह एक भारी सार्थ ( काफला ) सागर तट की ओर चल पडा । उग्रसेन भी अपनी सेना लेकर उनके साथ हो लिए। मातृभूमि, जन्मभूमि से किसे प्रेम नहीं होता, जब समस्त यादव योद्धा पश्चिम दिशा में चल पड़े और भारी सेनाए लेकर शौरीपुर व मथुरा को खाली कर के अनायास ही निकल गए तो सुनने और देखने वालों को अपार आश्चर्य हुआ । काली कु वर का आक्रमण और उसकी मृत्यु उधर सोम भूप ने जरासंध से जाकर सारा वृतांत सुना कर कहा"हे मगधेश्वर, कृष्ण बडा अहकारी है। यदि मैं अपने प्राणों की रक्षा के लिए वहा से न भागता, तो आप को मेरी मृत्यु का हो समाचार मिलता ।" " जरासा ने क्रोध से कहा- "तो क्या तुम ने के दरवार में नहीं की ।" " महाराज | मैंने आप की अपार शक्ति की ही बात तो कही थी जिस पर कृष्ण आग बबूला होकर नगी खड्ग लेकर मेरे ऊपर चढ़ आया । उस ने कहा कि मैं जरासंध की भी हत्या करूंगा, जाकर उससे कह दे कि अपनी जान की खैर मनाए । मैं यह कह कर वहां से चला आया कि महाबली मगधेश्वर के अपमान का मजा तुम्हें युद्ध भूमि में चखाया जायेगा ।" सोम की बात सुनकर जरासंध ने आवेश में आकर कहा - "ठीक है । तुम ने अच्छा ही किया ।" फिर उसने अपने दरबार में उत्तेजित होकर कहा - "क्या यहाँ कोई ऐसा वीर है जो उनको पकड कर मेरे सामने प्रस्तुत करे ? जो कोई ऐसा वीर हो जिसे विश्वास हो कि वह यादव कुल की समस्त सेना को परास्त कर उन्हें बाँध कर ला सकता है, वह सामने आये । है कोई ऐसा जा इस निश्चय का बीडा उठायेगा ? युद्ध की घोषणा उन उसी समय जरासघ पुत्र काली कुंवर अकड़ता हुआ उठा और उत्साह पूर्वक कहने लगा- "मैं बीड़ा उठाता हॅू में इस खडग की सौगंध X कई काली कुवर के रण में जाने से पहले यादवों के साथ युद्ध होना भी मानते हैं ।
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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