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________________ कृष्ण वध का प्रयत्न ४३६ सोम की धृष्टता को देखकर समुद्रविजय दांत पीसने लगे । चाहते थे कि कुछ कहें, पर उसी समय श्री कृष्ण हाथ मे नंगी खड्ग लेकर सौम की ओर दौड़ पड़े। गरज कर बोले- श्री दुष्ट देख रहा हू कि जरासंघ से अधिक अहंकारी तू स्वय है । प्राणो की खैर चाहे तो यहाँ से इसी क्षण भाग जा, वरना जरासंध से पहले मुझे तेरे होश ठिकाने लगाने पड़ेंगे । जाकर कह दे उस दुष्ट जरासंध से कि किसकी खड्ग से भूमि कॉपी है । यह रण क्षेत्र में निर्णय होगा ।" सोम कृष्ण के हाथ में नगी खड्ग देखकर कांप उठा और यह कहता हुआ वहां से भाग गया कि - "युद्ध क्षेत्र में ही तुम्हें जरासघ की शक्ति का पता चलेगा ।" यादवों का शौरीपुर से प्रस्थान इधर दूत सोम के लौट जाने पर यहां राजा समुद्रविजय मारे एक चिन्ता के व्याकुल हो उठे । चिन्ता भी साधारण नहीं थी, वे यह सोच रहे थे कि त्रिखण्डी मगधाधीश की माग तो सर्वथा अनुचित थी ही और उस समय उन्हें जो उत्तर दिया गया वह भी सर्वथा उचित था । किन्तु हमारे इस उत्तर से उसे सतोष तो नहीं प्रत्युत क्रोध आयेगा । और वह शौर्यपुर पर आक्रमण करेगा । जरासंध की उस अपार बलवाहिनी (सेना) का मुकावला हमारी अल्प बल वाहिनी सेना कैसे कर सकेगी ? और जब प्रत्याक्रमण नहीं कर सकेंगे तो उसका अर्थ यह हुआ कि सदा के लिए हमे आत्म समर्पण करना पडेगा फिर राम और कृष्ण की मृत्यु भी अवश्य भावी है अत उन्होंने नैमित्तिक को बुला कर कहा कि - " जरासंध के पर हमारी दशा क्या होगी ? कृपया बताईये कि क्या होगा ?" नैमित्तिक ने सारी बातों को ध्यान में रख कर अपनी विद्या के एक दिन क्रोष्टु की साथ युद्ध हो जाने युद्ध का परिणाम
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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