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________________ ४२६ जैन महाभारत शान्त रहिए । आप किसी प्रकार की चिन्ता न कीजिए । सिंह के सामने गज की जो गति होती है, इस भैंसा तन अहकारी चाणूर की भी वही गति होगी। यदि मैने इस से युद्ध न किया तो इतका और इसके स्वामी काम का दम्भ बड़ा ही अनहितकारी होगा।" कस का श्रीकृष्ण की बात सुनकर बहुत क्रोध आया । और उस ने उच्च स्वर में कहा--"चाणूर ! यह बालक है तो नन्हा सा पर है अहकार के विष से भरा हुआ। तनिक इस का अह कार तो निकाल ।" दूसरी ओर उस ने अपने मुष्टि नामक योद्धा को सकेत करके कहा--- "उठ इस मूर्ख की अकड़ तो ढीली कर दे।" ___ इघर चाणूर श्रीकृष्ण से भिड़ गया और मुष्टिक वस्त्र उतार कर लगोट खींच कर हिंसक भेड़ियों की भाति गुर्राता हुआ अखाड़े में श्रा गया । कस का आशय और मुष्टिक के अनायास ही झूमते हुए आने का कारण बलराम समझ गए । वे भी तुरन्त ही अपने वस्त्र उतार कर अखाड़े में कूद गए और इस से पहले कि मुष्टिक चाणूर से लड़ रहे श्री कृष्ण पर प्रहार कर उन्होने मुष्टिक को जा दबाया। कस ने देखा कि उसके दोनो पहलवान एक-एक ही बालक से भिड़ पाय है ओर एक नए युवक ने मैदान में उतर कर उसकी याजना पर पानी फेर दिया है पर वह अनेक राजाओं के उपस्थित होने के कारण इस नए युवक को कुछ नहीं कह सकता था अतः अपने पहलवानों को नहारा देने के लिए अपने स्थान पर बैठा यैठा ही उच्च स्वर मे कहने लगा ---"क्यो देरि लगा रखी है, चाणूर और मुष्टिक, शीघ्र खत्म कर के अलग हटो।" उसने सकेत द्वारा राम और कृष्ण की हत्या करने का आदेश दिया, पर उन वेचारी की सामर्थ्य हो तो वे हत्या कर भी दे, जब उन्हें वज्र शरीरो से वास्ता पड़ गया तो करें तो क्या करें ? उन्होंने अपनी मी बहुत कोशिश की, बहुत दॉव पंच चलाने चाहे पर वे स्वय उनके चगुल में ऐसे फस गए कि अपनी जान बचाने का प्रश्न आ गया। . वही देर बाद श्रीकृष्ण ने चाणूर को पटक दिया, वह चारपूर जो श्रीकृष्ण की हत्या करना चाहता था, स्वयं पृथ्वी पर गिर पड़ा और श्रीकृष्ण की टोकरा की मार से उस दुष्ट के प्राण पखेरू उड़ गए। उसी समय बलराम ने भी मुष्टिक को भूमि पर दे मारा और एक ऐसा मुका मारा कि मुप्टिक यहीं ढेर हो गया।
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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