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________________ कंस वध कृष्ण पर गर्व भी हुआ। पर उसी क्षण उन्हें एक विचित्र सी आशंका भी हुई। वे पूछ बैठे-- _ "तुमने यह सब कुछ कहाँ सुना ?" ___ "लोगों में तो इसकी बहुत चर्चा है। बाजारो, गलियों चौपालों और मित्र मण्डलियो मे बस वार्तालाप का विषय ही वह अद्भुत कुमार बन गया है। बच्चे बच्चे की जिह्वा पर उसकी कथाए हैं।" व्यक्ति बोल उठा। जैसे वह बता रहा हो कि---आपको पता ही नहीं, यह तो सभी जानते हैं।' उसे गर्व था कि वह बात वह जानता है जिसका वसुदेव को ज्ञान ही नहीं। पर दूसरी ओर वसुदेव सोचने लगे। मैंने तो पुत्र को छुपाने के लिए ही नन्द के घर रक्खा था, पर वह तो अपन आप ही प्रगट हुआ जा रहा है। यह समाचार तो कस को भी मिले होंगे। यदि उसने कृष्ण को अपना शत्रु जानकर कुछ कर डाला तो क्या होगा? ___यह सोच कर वे बहुत चिन्तत हुए। कृष्ण को कस के कोप से बचारे का कोई उपाय ही समझ में नहीं आता था, वे उस दिनकर को छुपाने का प्रयत्न करना चाहते थे जो बादलों की ओट में आकर भी तो अपने अस्तित्व का भान कराता ही रहता है। जिस प्रकार सिंह सात तालों मे बन्द होने पर भी अपनी उपस्थिति को छुपा नहीं सकता। उसी प्रकार भानु कैसे छुपा रहेगा ? रत्न तो कीचड़ में पड़ कर भी नहीं छिपता । जब कीचड़ के ऊपर आता है, कुछ न कुछ चमक दिखाई दे ही जाती है फिर वीर पुरुष कैसे छानी रह सकता है ? कहा भी है छुपाये से गुदडियों में न ये लाल छुप सकते, दिलावर देवता दाता न तीनों काल छुप सकते। फिर भी वसुदेव पिता थे, उनके हृदय में वात्सल्य ठाठे मार रहा था। वे चिन्तित हो गए। उन्हें चिन्तित देख कर देवकी ने पूछाआप चिन्ता में फस गए, आपका तो मुख कमल ही मुरझाया हुआ "देवकी मुझे चिन्ता है उस तुम्हारे लाडले की । सुनी उसकी करतूत । हमने रक्खा था छिपाने के लिए पर वह कर रहा है ऐसे काम कि सारा ससार उसे जान गया है, कहीं केशी अश्व को मारता है तो कभी अरिष्ट वृषभ का वध करता है, कभी काली नाग को नथता है।"
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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