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________________ ४०० जैन महाभारत कानो में कुण्डल पड़े थे और साथ में कुछ रत्न रखे थे, १मेरे कोई सन्तान नहीं थी, मैं बालक को अन्य बहुमूल्य सामान के साथ अपने घर ले आया ओर अपनी पत्नी रावा का दे दिया । उसने बालक को गोद मे लेते ही कान खुजाया, अत मैंने २कर्ण ही उसका नाम रख दिया । हम दोनो ने बडे लाड प्यार से पाला, जो कि आज कर्ण वीर के रूप में आपके सामने है। वास्तव में यह किसी राजा का ही बेटा है। भानु सूत की बात सुन कर कुन्ती की शंका विश्वास में परिणित हो गई । वह सोचने लगी हृदय की पुकार कभी असत्य नहीं होती । देखो इस वीर ने मेरी ही कोख से जन्म लिया है। पर लाक लज्जा के कारण मैं इसे अपना पुत्र नहीं कह सकती । तो भी यह है तो मेरा ही पुत्र, इस लिए इसको भी मेरे हृदय में वही स्थान है जो अजुन का है। अतएव में यह कैसे सहन कर सकती हूँ कि मेरी आखो के आगे मेरे ही दो आंखों के तारे युद्ध करें। वह अनुभव करने लगी कि ससार मे अज्ञान के समान कोई और दुख नहीं है । अज्ञानता वश यह दो सगे भाई एक दूसरे को शत्रु रूप में चुनौती दे रहे हैं । इन्हे पता नहीं कि इनकी रगों मे एक ही रक्त दौड़ रहा है। अब इस समय इन्हें कौन समझावे कि अज्ञानता वश यह जो कुछ अनर्थ कर रहे है उसको देख कर उनकी माता की छाती फटी जा रही है। इन्हे कोन वताए कि दोनों में से चाहे किसी को चोट आए, कोई पराजित हो, एक है जिसे समान ही दुख होगा। वह है उनकी मां जिसने दोनों को नौ नौ मास तक १-अन्य ग्रन्थो में ऐसा भी उल्लेख पाया जाता है कि उस पेटी मे एक पत्र भी था। जिसमें बालक नाम 'कर्ण' लिखा हुआ था, अत उसी नाम से वह विख्यात हुआ । पाडव चरित्र में उल्लेख है कि वह बालक अपने दोनो हाथ अपने कानो के नीचे लगाकर सोया हुआ था इस लिए उसी मुद्रा के आधार पर उसका नाम 'कर्ण' रखा गया। २ कर्ण का दूसरा नाम सूर्य पुत्र भी है । कर्ण के प्राप्त होने से पूर्व एक वार राधा को प्रात काल स्वप्न में सूर्य दिखाई दिया और एक ध्वनि सुनाई दी कि तुझे एक पराक्रमी पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी । इस प्रकार सूर्य द्वारा सूचित होने के कारण उसका नाम सूर्य पुत्र पडा।
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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