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________________ जैन महाभारत इसीलिये भगवान महावीर स्वामी ने उन युगलिनी के नरक गमन को दल 'प्रछेरी या 'पाश्चर्यो म गिना है। क्योकि नामान्यतया कभी कोई युगलिया गरकर नरक मं न जाना, किन्तु प्रश्चनप के पिता और माता को युगलिया होकर भी तामसिक पदार्या के भवन के कारण नरक में जाना पड़ा। इस युगलियों में हरिवंश की उत्पनि गई। ___ हरि और हरिगी के परलोकवानी हो जाने पर वीर शिरोमणी महाराज अश्व ने अनेक वर्षों तक बडे न्याय के 'अनुमार प्रजा का पालन किया । इन्हीं महाराज 'प्रश्व के पत्र हिमगिरी हुए। हिमगिरी के गिरी नामक पुत्र हुए, जिन्होंने अपने-अपने समय में न्याय पूर्वक राज्य करते हुए प्रजा का पालन किया। हरिवग में भगवान मुनि मुद्रत का प्रादुर्भाव अनन्त काल के बीतने पर इमी वश मे मगध देश के महाराज सुमित्र हुए । सुमित्र की राजधानी कुशाग्रपुर थी, उनकी पटरानी का नाम पद्मावती था । महाराज सुमित्र और पद्मावती बडे प्रानन्द के साथ राज-काज चला रहे थे, इनके राज्य मे सारी प्रजा अत्यन्त प्रसन्न और सतुष्ट थी। कहीं किसी को किसी प्रकार का दुख दैन्य नहीं सताता था। प्रत्येक परिवार सर्वथा सुखी और समृद्ध था तथा चारो ओर सुख और शांति का अखण्ड साम्राज्य छाया हुआ था। प्रजा के सुखी हाने से राजा पोर रानी का मन भी सदा अत्यन्त प्रसन्न और आनन्दित रहता था। एक समय शरद पूर्णिमा की रात्री मे महारानी पद्मावती सुखशय्या पर सो रही थी कि प्रातःकाल के समय उन्हे सहमा १. गज, २ वृषभ, ३ सिंह, ४ लक्ष्मी, ५. पुष्पमाला, ६ चन्द्र, ७ सूर्य, ८ कलश, ६ कमलपूर्ण सरोवर, १०. समुद्र, ११. सिंहासन, १२. देव विमान, १३. रत्नराशि और १४. निधूम अग्नि ये चौदह महा स्वप्न दिखाई दिये। - उस समय अनुपम कान्ति वाली छप्पन दिक्कुमारिया महारानी पद्मावती की सेवा में उपस्थित थीं। इन चौदह स्वप्नो के देखने से " महारानी के मुख को अत्यन्त प्रभामय और विकसित देख उनकी सब सहचारियों ने उन्हे घेर लिया और हर्प विहल होकर महारानी से प्रार्थना करने लगी कि इन स्वप्नो का वृतांत तो महाराज की सेवा में निवेदन करना चाहिये और इन स्वप्नो का फल पूछना चाहिये। तब
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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